Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 41
________________ सोलहकारण धमं 1 | ३९ बितरण करना, सरस्वती भण्डार तथा वाचनालय स्थापित करना, विद्यालय बनवाना, उत्तीर्ण छात्रोंको पारितोषिक देकर उनके उत्साहको बढ़ाना, जनसाधारणमें विद्याका प्रचार करना ग्रन्थोंका सर्वसाधारणमें प्रचारार्थं अनेक भाषाओं में भाषान्तर ( उल्था ) करना, प्राचीन शास्त्रोंकी खोज करना. जोर्ण ग्रन्थोंका फिरसे लिखवाना, ग्रन्थोंको इतने सरल और इस ढंगसे लिखें कि जिससे हरकोई समझ सके । सदा ऐसे भाव रखना कि कोई भी प्राणी सम्यग्ज्ञानसे वंचित न रह जावे इत्यादि, सो व्यवहार शास्त्रदान है । निश्चय अभयदान - अपने व परके आत्माओंको विषय कषाय ( मोह रूप प्रबल वैरीसे बचाना अर्थात् किसी प्रकार किंचिन्मात्र भी संक्लेशता न होने देना' । व्यवहार अभयदान - अपने व परके प्राणोंकी रक्षा करना, मरनेको यथाशक्ति प्रयत्न करके बचाना, उनका भय दूर करना सो व्यवहार अभयदान है । 1 दान - यथार्थ में वही कहा जाता है जो स्वपरोपकारार्थं दिया जाता है, जैसा कि तत्वार्थसूत्र में कहा है “अनुग्रहार्थस्वस्थातिसर्वो दानम् । " और जिस दानसे विषयकषायोंकी अपने व परके परिणामोंमें तीव्रता होवे, वह दान दाम नहीं कहा जा सकता है, वह कुदान है । 1 ب उक्त चारों व्यवहारदान निम्नलिखित चार प्रकारसे दिया जा सकता है - भक्तिदान, करुणादान, समदान, कीर्तिदान | अपने से गुणाधिक्य महापुरुषोंकों दान करना सो भक्तिदान है। यह दान सुपुत्रों (मुनि, अर्जिका, श्रावक और भाविका इन चार प्रकार संघों ) को हो भक्तिभावसे दिया जाता है । दुःखित, भुखित, दीन, अनाथ, असहाय, निर्बल जीवोंको

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