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सोलहका रण धर्म ।
(६) शक्तिवस्त्याग भावना ।
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शक्तितस्त्याग --- अर्थात् शक्ति अनुसार त्याग ( दान )
करना ।
दान चार प्रकारका होता है- आहारदान, औषधिदान, शास्त्र: दान और अभयदान। ये चारों दान निश्चय और व्यवहार रूप से दो प्रकार हैं
निश्चय आहारदान - अपने व परके आत्मामें उस अव्यावाघ गुणको ( वेदनी कर्मको नाश कर ) प्रगट कर देना, कि जिससे क्षुधा ही न लगेगी तो क्ष धाके उपशमार्थ जो आहार किया जाता है, उसके भक्षणकी भी आवश्यकता न रहेगी, यही निश्चय बाहारदान है ।
व्यवहार आहारदान - अपनी व परकी क्ष वाके उपशमार्थ शुद्ध प्रासु खाद्य सामग्रियोंका भक्षण करना व कराना । निश्चय औषधिदान - अपने व परके आत्माको जन्म, जरा, मृत्यु इन त्रिरोगोंसे छुड़ाकर अविनाशी अखण्ड सुखोंको प्राप्त करा देना, सो निश्चय औषनिदान है ।
व्यवहार औषधिदान -- शुद्ध प्रासुक औषधियोंके द्वारा अपने च परके शरीर में उत्पन्न हुवे, बात पित्त व कफादिकके प्रकोपनसे जो रोगादिक उत्पन्न होवे उनको दूर करना सो व्यवहार औषधिदान है ।
निश्चय शास्त्रदान- अपने व परके आत्मा में सम्यक् ज्ञानशक्तिका विकाश कर देना ।
व्यवहार शास्त्रदान - पढ़ना व पढ़ाना, उपदेश करना क कराना, पुस्तकें तथा शास्त्र प्रकाशित कर जिज्ञासु जनों में