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सोलाकारण वर्मः। उनके दुःख दूर करनेके विचारसे जो दान दिया जाता है सो करूणादान है । इसमें सुपात्र कुपात्र विचारकी मुख्यता नहीं है, किन्तु करूणा ( दया । भावको हो मुख्यता रहती है। ___ अपने ही समान पुरुषों सम्बंधियों जैसे माता, पिता, भाई, बहिन, फुवा, भानजी, बेटो, बेटा, जंवाई, बहनोइ, साला, श्वसुर, समधि, समधन, विदाई विवाहन आदिको जो द्रव्य भेट स्वरूप देना ( दान करना ।, सहायता पहुंचाना, भोजनादि करना, जीमनवार करना, जातिमोजन करना दगादि, सः सब समदान या व्यवहारदान है। इसमें भी पात्रापात्रके विचारकी मुख्यता नहीं है, केवल अपने व्यवहारकी मुख्यता है । क्योंकि इसमें प्रायः बदला भी होता है। यह दान लिया भी जाता है और दिया भी जाता है।
कोतिदान-जो अपने व्यवहारानुसार केवल मान बड़ाई पानेके विचारसे दिया जाता है। इसमें भी पायापात्रके विचारकी मुख्यता नहीं है, केवल कीति ( यश } प्राप्त करने व मान बड़ाई पानेकी ही मुख्यता है । "इन चारो प्रकारोंमें सबसे उत्तम भक्तिदान है, क्योंकि वह सुपात्रों ही को ज्ञानपारित्रकी वृद्धिके अर्थ दिया जाता है ।
उसके बाद करुणादान भी उत्तम माना गया है। यद्यपि इसमें पात्रापात्रके विचारको मुख्यता नहीं होती, तो भी फरुणाभावोंसे जो निःस्वार्थ परोपकार किया जाता है, इसीसे सराहनीय है परोपकार करना भी गृहस्थोंका एक मुख्य कर्तव्य कहा है-- परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः, परोपकाराय दुहन्ति गावः । परोपकाराय वहन्ति नद्याः, परोपकारार्थमिदं शरीरम् ॥