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सोलहकारण धर्म । बैराकी आवश्यकता न रखेंगे, और सदा अपने कर्तव्य पर पड़ रहेंगे इत्यादि । ___ में स्वानुभवसे कह सकता हूँ कि बालकोंको इस प्रकारके कोमल निर्बल, कायर और लोलुप बनाना क्या है ? मानों मालकोंके साथ घोरतम शत्रुता ही करना है, चाहे लोग भले ही इस अनर्थको प्रेम समझे। बहुतसे माता पिता अपने मालकोशी तामें निगलिमित्त समग एकर अपको हर्षित करते हैं कि हमारा बेटा या भाई बहुत ही कोमल है, वह तनिक भी शीत उष्ण नहीं सह सकता है, न उसका कहीं पेट मरता है, एक ग्रास कम बढ़ हुआ कि बस, उसका पेट दुखने लगता है इत्यादि, परन्तु मैं तो इस सुकुमारताको कायरता ही समझता हूं।
मेरे बिधारसे बच्चोंको बाल्यवस्थासे ही सहनशील, साहसी बोर हढ़ बनाना चाहिये । क्योंकि निबंल मनुष्य न तो संसार व्यवहार हो भले प्रकार चला सकता है, और न परमार्थ ही कर सकता है। क्योंकि आजतलक जितने जीव मोक्ष गये व आगे जायेगे, वे सब बहुत बलवान पत्रवृषभ बाराच संहननवाले ही थे, बोर होंगे।
देखो पाश्व नाय प्रभु कमठके उपसर्गसे नहीं डिगे । देशभूषण-कुलभूषण स्वामीने दुष्ट राक्षस कृत उपसर्ग जीता। मौर भी सुकुमाल सुकौवाल, पांडवादि महामुनियोंने घोर उपसर्ग सहन किये और परम पद पाया है । इसलिये यथाशक्ति उपर कहें अनुसार बारह प्रकारके तपोका निरन्तर अभ्यास करना चाहिये क्योंकि कहा है