Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ सोलहकारण धर्म । शल्योंको छोड़कर शरीरसे ममत्वको छोड देवे। क्योंकि जो हमें छोड़ना चाहता है, या बलात्कार हमसे अलग हुवा चाहता है, उसे हम उसके छोडनेके पहिले ही यदि छोड देखें, तो हमको उससे निर्ममत्व भाव होने के कारण किंचित भी दुःख न होगा, और तुम सानन्द उससे छुटकारा पा जाबेगे । प्रथम तो यदि ययार्थ समाधि बन जावे, तो पुनः शरीर धरना ( अन्म मरण करना ) ही न होगा। और कदाचित् कोई पूर्वसंचित कर्मोका फल भोगना शेष रह गया हो, कि जिसके लिये शरीर धारण करना पड़े तो स्वर्गमें उत्तम देव अथवा मनुष्यों में राजा आदि उत्तम मनुण्य होगे जो कि एक दो आदि बहुत ही कम भव धारण करके सदाके लिये शरीर (जन्म मरण ) से रहित होकर परमपदको प्राप्त करेंगे । ___ यह तो निश्चय है, कि इस शरीरको किसी न किसी दिन छोडना ही पड़ेगा, क्योंकि जब तीर्थकर, चक्रवती, नारायण आदि ६३ शलाका पुरुषोंका ही शरीर स्थिर नहीं रहा है तो अन्य पाक्तिहीन जीवाका शरीर स्थिर रह सकेगा, यह कल्पना बाकाशमें महल बनाने के सदृश है। और जब यह स्थिर ही न रहेंगा तो इससे ममत्व करना ( रखना ) मूर्खता नही तो क्या है ? क्योंकि इससे ज्ञाता पुरुष कभी अस्थिर पदार्थको नहीं अपनाते हैं, न उसके उत्पन्न होने व नाश होनेसे कभी अपने भावोंको विचलित करते हैं। कारण कि वे जानते हैं कि वस्तुका स्वरूप ही उत्पाद व्यय धोव्यात्मक है । वह पर्यायापेक्षा उत्पन्न और नाश होता है, और द्रव्य अपेक्षा सदा भोव्य रहता है । जो इसमें रागद्वेष करता है, वही इस असार संसारमें जन्म मरणके दुःखको सहला है । इसलिये यही उत्तम है, कि इससे निर्ममत्व होना ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129