Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 33
________________ सोलहकारण धर्म । (४) अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग अभोक्ष्ण ज्ञानोपयोग अर्थात् निरन्तर तत्त्वोंका अभ्यास करना । जाननेका नाम ज्ञान है, और जाननेमें चितको लगाना सो उपयोग है, इसलिये निरन्तर जो जानने योग्य पदार्थों को जानते रहना सो अभोक्ष्ण ज्ञानोपयोग है । ELL ३१ ज्ञानमें उपयोग रखनेसे दिनोंदिन अभ्यास और अनुभव बढ़ता जाता है । अनुभवी पुरुष कभी धोखा नहीं खाता है, उससे भूल होना संभव नहीं है, और भूल न होनेसे दुःख नहीं होता है। ज्ञानी वस्तुस्वरूपके विचारमें मग्न रहते हैं इसलिये ज्ञानोको दुःख नहीं होता । असल बात यह है कि ज्ञानमें सदा उपयोग रहने से मन अन्यत्र नहीं डोलता है, विषयोंकी ओर नहीं जाने पाता है, तब विषयोंको चाहरूप वाह भी उत्पन्न नहीं होने पाती है । यत्रतत्र उपयोग न जाने से और तो क्या अपने शरीरमें होती हुई बेदना तक भी नहीं मालूम होती है, इस प्रकार ज्ञानी सदा सुखी रहता है। ज्यों ज्यों ज्ञान बढ़ता है त्यों त्यों आत्माकी शक्ति प्रफुल्लित होतो जाती है, आत्मामें एक अपूर्व ही आनन्दका विकाश होने लगता है, संसारके क्षणिक विषयस्वादरूप सुख तुच्छ भासने लगते हैं, क्रोधादि कषायें धीरे धीरे छोड़कर भागने लग जाती हैं, सहनशीलता, घयंवादि गुण बढ़ते जाते हैं, घबराहट नहीं रहती है । यथार्थ में ज्ञानीके सुखका अनुमान ज्ञानी हो कर सकता है। अज्ञानी विचारा क्या जाने ?

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