Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 31
________________ सोसहकारण धर्म । किस प्रकार ध्यान स्थिर रख सकते हैं, और जब ध्यान संयम तप ही नहीं कर सकते तो इनके विना मोक्ष कहाँ ? क्या इन निर्बलोंकी यह सामर्थ्य हो सकती है कि ये आये हुए उपसर्ग व परीषहोंको सहन कर सकें? नहीं, कभी नहीं। दे ब्रह्मचर्य पालनेवाले घोर और पांडव ही थे, जो दुष्ट कौरवोंके सम्बन्धी भाइयों द्वारा लोहनिर्मित अग्निमयी आभूषण पहिराये जानेपर भी ध्यानसे नहीं डिगे । के बाल सफारी पाश हो, यो आठ दिन तक बराबर कमठके जीव द्वारा होते हुए वर्षी आदिका घोर उपस गं सहते रहे । वे ब्रह्मचर्य की महिमा जाननेवाले सुकुमाल जी ही थे, कि जिनके शरीरको तीन दिन तक स्यालिनीने अपने बच्चों सहित भक्षण किया पर वे ध्यानसे न डिगे। वे महाराज बाहुबलि थे जो एकासन खड़े हुवे तप करते रहे कि जिनके शरीरपर वेलें चढ़ गई, सांप लिपट गये, चिकाटयोंने घर बना लिये तो भी सुमेरुवत् निश्चल खड़े रहे । वे भगवान ऋषभनाथ ही थे, जो प्रथम ही छः मासके उपवास धारणकर ध्यानमे लीन हो गये और छ: महिने तक भाजनांतराय होते रहनेपर भी व्रतमें आरूत बने रहे. जबकि साथमें दीक्षा लेनेवाले अन्य ४००० राजाओंने झुघाओने तृषासे पीड़ित होकर तप भग कर दिया. और ३६३ पाखंड मत चला दिये, इत्यादि अनेकों दृष्टांत पुराण ग्रन्यों और इतिहास में भरे पड़े हैं जो बह चर्य की महिमा गा रहें हैं, इसलिये ब्रह्मचर्य व्रतको उभय लोक हितकारी जानकर पालन करना चाहिये । भंड वचन बोलना, रसकथा करना, सीटने । खराब गालियां ) बकना, खोटे गीत गाना, की पुरुषोंके रूपका अवलोकन करना, उनसे एकान्तमें वार्तालाप करना, सियोंसे

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