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सोलहकारण धर्म । प्रवृत्ति सो शोलबतेषु अनतिचार भावना कहीं जाती है। अथवा हिंसा, मुल, चोरी, अब्रह्म और परिग्रहसे एकदेश विरक्त होनेपर पांच अणुव्रत +दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदंड त्यायव्रत ये तीन गुणवत+और सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोगपरिणाम व्रत और अतिथिसंविभाग व्रत ये चार शिक्षाक्त ऐसे ५ व्रत और ७ शील सब मिलकर १२ व्रत हुए, सो इनको ६० । १२४५) अतिचार रहित पालना, सो मी शीलवतेषु अनतिचार भावना कहाती है । ___ यथार्थमें शील आत्माके स्वभावकों कहते हैं इसलिए मात्माके स्वभावसे भिन्न जो परभाव तिन सबको रोककर स्वभावरूप प्रवृत्तिका होना यही शील है। परन्तु व्यवहारमें मैथुन ( कामसेवन ) आदि क्रियाओसे विरक्त होनेको भी शील कहते हैं।
यह व्यवहार शील दो प्रकारका होता है- एक गृहस्पका, दुसरा साधुका । गृहस्थका शील स्वदार-सन्तोषरूप होता है। और साघुका मन वचन कायसे खीमात्रके संसर्गका त्यागरूप होता है । शोलको ब्रह्मचर्य भी कहते हैं ।
ब्रह्मचर्य ही ऐहिक और पारलौकिक दोनों प्रकारके सुखोंका प्रधान साधन है । हमारे देशमें प्राचीन कालसे यहीं पद्धति चली आ रही है, कि बालक बालिकायें जिसने कालतक विद्या अध्ययन करें, वहांतक वे अखण्ड ब्रह्मचर्यका पालन करें। इस ब्रह्मचर्य व्रतके चिह्नरूप यज्ञोपवीत (जिसे ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं, ) द्विजातिके पुत्रोंको आठ वर्षकी अवस्था होनेपर पहिना दिया जाता है। और ब्रह्मचर्य के निर्दोष पालनार्थ, इसके विरोधी कामोत्तेजक कारणोंको, जैसे मनमंजन बगाना, बालोंका सम्हारना, इत्र फुलेल आदिका बेप
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