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सोलहकारण मर्म ।
[२३ सना, उनके आगे आगे नहीं चलना, नहीं बोलना, जमको आदर सहित उच्चासन देना, नम्रतापूर्वक मिष्ट वचन बोलना, उनकः आज्ञा मानना इत्यादि । प्राणियोंमें यह गुण होना परमावश्यक है । विनयो पुरुषका कोई भी शत्रु संसारमें नहीं रहता है, विनयो सबका प्रोतिभाजन होता है, विनयीको गुरु आदि शिक्षकम ण प्रेमसे विद्या पहाते हैं, विनयोको कष्ट आनेको शंका नहीं रहती, लोग उनकी सदैव सहायता करने में तत्पर रहते हैं. परन्तु अभिमानीके तो निष्कारण प्रायः सभी शत्रु बन जाते हैं । इसलिये विनयगुण सदैव धारण: करना चाहिए । ___ जैसा कि कहा हैदेव तथा गुरुराय तथा, तप संयम शील व्रतादिक धारी । पापके हारक कामकं सारक, शल्यनिवारक कम निवारी ।। . धर्मकै धीर हरें भवपीर, कषायको चौर संसारके तारा । ज्ञान कहे गुण सोहि लहे, जु विनय गह मनपचकाय सम्हारी ।।
इति विनयसम्पन्नत्व भावना || २॥
(३) शालव्रतेषु अतिचार
शोलतेषु अनतिचार--अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह अथवा अपरिग्रहप्रमाण, ये पांच धत और इनको निर्दोष पालनार्थ क्रोधादि कषायोंके रोकनेको शीलवत कहते हैं, और शीलवतोंके. पालन करनेमें मनचकायको निदोष