Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 20
________________ १४] सोलहकार धर्म | जैन धर्म की श्रद्धासे शिथिल होजाती हैं कि " दि० आचायोंने तो श्री पर्याय मोक्ष नहीं बताया है", सो उनको जानना चाहिये कि यदि स्त्री पर्यायसे मोक्ष होता तो दिगम्बराचार्य क्यों ना कहते ? क्या उनके कहनेसे या उनके द्वारा उपदेशित धर्मको धारण करने ही से मोक्ष जानेसे रुक सकते हैं ? कदापि नहीं। फिर दिगम्बराचायको थियोंसे कोई द्वेष तो था ही नहीं जो ऐसा कहकर स्त्री जातिको निर्बल बताकर उनका चित्त दुखाते । जो महात्मा सूक्ष्म जीवोंकी भी रक्षाका उपदेश करे और मोटे पंचेंद्री प्राणीका चित्त दुखावे, क्या यह धर्मत्रालोके कभी सम्भव हो सकता है ? अथवा क्या अन्य कहने से हो मोक्ष हो जाता है ? 1 क्या मोक्ष कोई ऐसी वस्तु है जो केवल आशीर्वाद देने मात्र से ( अनुग्रह ही मिलते। हमारी माता बहिनों और पुत्रियोंको धर्मका स्वरूप समझकर धर्म में ढ़ हो जाना चाहिये, विकल्पको त्याग देना चाहिये। इस प्रकार दृढ श्रद्धान करके उन्हें सच्चे देव वर्म गुरुकी भक्ति करना और अपना पवित्र जोवन शील संयम व्रतादि सहित बिताकर संलेखना - मरण करना चाहिये, इससे बीलिंग छेद होकर अवश्य हो अनुक्रमसे मोक्ष प्राप्त हो सकेगा, इत्यादि । ऐसा न करके क्यों त्यों संसारी सुखोंके लोभके वश होकर जो सच्चे दिगम्बर जैन धर्मको छोड़कर अन्य प्रकार विना विचारे देखादेखी करके प्रवर्तता है सो हो लोक ( धर्म ) मुड़ता है। यह जो वर्तमान में उल्टा फल दृष्टिगत होता है, उसका कारण उन धर्मात्मा व पापात्मा जीवोंके पूर्वोपार्जित पाप मा पुण्य ( धर्म ) का फल है न कि वर्तमानका, इसलिए लोगोंको ( प्राणियोंको) उनके शुभ अशुभ भावों व कर्मोंका शुभाशुभ

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