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महापुराणान्तर्गत श्रावकधर्म-वर्णन
स्यात्प्रीतिमन्त्रस्त्रैलोक्यनाथो भवपदादिकः । त्रैलोक्यज्ञानी भव त्रिरत्नस्वामी भवेत्ययम् ।। ९६ चूणि:- त्रैलोक्यनाथो भव, त्रैलोक्यज्ञानी मव, त्रिरत्नस्वामी भव । ( प्रीतिमन्त्रः ) मन्त्रोऽवतार कल्याणभागी भववदादिकः । सुप्रीतौ मन्दरेन्द्राभिषेककल्याणवाक्परः ।। ९७ भागी भव पदोपेतस्ततो निष्क्रांतिवाक्परः । कल्याणमध्यमो भागी भवेत्येतेन योजितः ।। ९८ ततश्चार्हन्त्य कल्याणभागी भवपदान्वितः । ततः परम निर्वाणकल्याणपदसङ्गतः ।। ९९ भागी भवपदान्तश्च क्रमाद्वाच्यो मनीषिभिः । धृतिमन्त्रमितो वक्ष्ये प्र ेत्या श्रृणुत भो द्विजाः। १०० चूर्णि:- अवतारकल्याणभागी भव, मन्दरेन्द्राभिषेककल्याणभागी भव, निष्क्रान्तिकल्याणभागी भव, अर्हन्त्यकल्याणभागी भव, परमनिर्वाणकल्याणभागी भव । ( सुप्रीतिमन्त्रः ) धृतिक्रियामन्त्रः
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आधानमन्त्र एवात्र सर्वत्र हितदातृवाक् । मध्ये यथाक्रमं वाच्यो नान्यो भेदोऽत्र कश्चनः ।। १०१ चूणि:- सज्जातिदातृभागी भव, सद्गृहिदातृभागो भव, मुनीन्द्रदातृभागी भव, सुरेन्द्रदानृभागीभव परमराज्यदातृभागी भव, अर्हन्त्यपददातृभागी भव, परमनिर्वाणदातृभागी भव । ( धृति क्रियामन्त्रः )
मोदक्रियामन्त्रः
मन्त्रो मोदक्रियायां च मतोऽयं मुनिसत्तमः । पूर्व सज्जातिकल्याणभागी भव पदं वदेत् ॥ १०२ ततः सद्गृहिकल्याण मागी भव पदं पठेत् । ततो वैवाहकल्याणभागी भव पदं मतम् ॥ १०३ इन मंत्रों का उपयोग करे। मंत्रोंका यह विनियोग आम्नायके अनुसार दिखाया गया हैं ।। ९५ ।। गर्भाधानक्रिया के मंत्रोंका संग्रह मूलमें दिया हुआ हैं । अब प्रीतिक्रिया के मंत्र कहते है - यह गर्भस्थ शिश ' त्रैलोक्यनाथो भव' (तीनों लोकोंका स्वामी हो), ' त्रैकाल्यज्ञानी भव' (तीनों कालोंका ज्ञानी हो ) और 'त्रिरत्नस्वामी भव' ( रत्नत्रयका स्वामी हो ) । । ९६ ।। इन प्रीतिमंत्रों का संग्रह मूलमें दिया हुआ हैं । अब सुप्रीति क्रिया के मंत्र कहते है - यह गर्भस्थ बालक 'अवतारकल्याण भागी भव' (गर्भावतारकल्याणकका भोक्ता हो ) 'मन्दरेन्द्राभिषेककल्याणभागी भव' (सुमेरुपर्वत पर इन्द्रोंके द्वारा जन्माभिषेक कल्याणकको प्राप्त करने वाला हो), 'निष्क्रान्तिकल्याणभागी भव' (निष्क्रमण कल्याणका स्वामी हो ), आर्हन्त्य कल्याणभागी भव' (केवलकल्याणकका भोक्ता हो), और 'परमनिर्वाणकल्याण भागी भव' (उत्कृष्ट निर्वाणकल्याणकका धारक हो ) येमंत्र मनीषी जनोंको क्रमसे बोलना चाहिए। ६७ १०० ।। सुप्रीति मंत्रों का संग्रह मूलमें दिया गया हैं । अब आगे धृतिक्रियाके मंत्र कहेंगे, हे ब्राह्मणो, तुम लोग प्रीति के साथ सुनो। गर्भाधानक्रियाके सर्व मंत्रोंके मध्य में 'दातृ' शब्द यथाक्रमसे लगाकर बोलना चाहिए । इसके अतिरिक्त और कोई भेद नहीं है । १०१ ।। यथा-सज्जातिदातृभागी भव' यह गर्भस्थ पुत्र ( उत्तम जातिको देनेवाला हो), 'सद्गृहिदातृभागी भव' (सद्-गृहस्थ पदका दाता हो), 'मुनीन्द्रदातृभागी भव' ( महामुनिपदका दाता हो ) सुरेन्द्रदातृभागी भव' (सुरेन्द्रपदका दाता हो ) 'परमराज्यदातृभागी भव' (परमराज्यका दाता हो), 'आर्हन्त्यदातृभागी भव' (अरहन्त पदका दाता हो), 'परम निर्वाणदातृभागी भव' (उत्कृष्ट निर्वाणपदका दाता हो) । धृतिक्रिया में इन मंत्रोंको बोले । सर्वमंत्रोंका संग्रह मूलमें दिया हुआ है । अब मोदक्रिया के मंत्र कहते है । उत्तम मुनियोंने मोदक्रिया के मंत्र इस प्रकार माने हैं- सर्वप्रथम 'सज्जाति कल्याणभागी भव' ( सज्जातिके कल्याणका धारक हो ) यह पद बोले । । १०२ ।। पुनः सद्-गृहिकल्याणभागी भव' (सद्गृहस्थ के कल्याण
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