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श्रावकाचार-संग्रह पद्मपत्रनयनाः प्रियंवदा: श्रीसमा: प्रियतमा मनोरमाः । सुन्दरा दुहितरः कुल:लयाः पुण्यपङ्क्तय इवात्तविग्रहाः ।। ६१ भ्रंशितव्यसनवृत्तयोऽमला: पावना हिमकरा इवाङ्गजाः । शक्रमन्दिरमिवास्ततामसं मन्दिरं प्रचुररत्नराजितम् ।। ६२ लब्धचिन्तितपदार्थमुज्ज्वलं मूरिपुण्यमिव वैभवं स्थिरम् । सर्वरोगगणमुक्तदेहता सर्वशर्मनिवहाधिवासिता ॥ ६३ ज्ञानदर्शनचरित्रभूतयः सर्वयाचितविधानपण्डिताः । सर्वलोकपतिपूजनीयता रात्रिभुक्तिविमुखस्य जायते ॥ ६४ सूकरी संवरी वानरी धीवरी रोहिणी मण्डली शाकिनी क्लेशिनी। दुर्भगा निःसुता निर्धवा निर्धना शर्वरीमोजिनी जायते भामिनी ।। ६५ बान्धवैरञ्चिता देहजैर्वन्दिता भूषणभूषिता दूषणजिता। श्रीमती हीमती धीमती धर्मिणी वासरे जायते भुक्तित: शर्मिणी ।। ६६ रात्रिभोजनविमोचिनां गुणा ये भवन्ति भवमागिनां परें। तानपास्य जिननाथमीशते वक्तुमत्र न परे जगत्त्रये ॥ ६७ यत्र सूक्ष्मतमवस्तनूभृतः सम्भवन्ति विविधाः सहस्रशः ।
पञ्चधा फलमुदुम्बरोद्भवं तन्न भक्षयति शुद्धमानसः ।। ६८ भोजनसे विमुख रहता हैं उसके कमलपत्रके समान नयनवाली प्रियभाषिणी, लक्ष्मीके समान मनोहारिणी प्रियतमा स्त्रियां प्राप्त होती हैं सुन्दर आकार वाली, कलाओंकी जाननेवाली पूण्यकी पंक्तिके समान शरीरको धारण करनेवाली उत्तम कन्याएँ उत्पन्न होती है ।।६।। व्यसनोंसे रहित, निर्मल आचरण एवं व्यापार करने वाले, चन्द्र के समान पावन शान्ति देनेवाले पुत्र पैदा होते हैं। अन्धकारसे रहित, प्रचुर रत्नराशिसे भरपूर इन्द्र के भवनके सम न सुन्दर मन्दिर प्राप्त होता हैं ॥६२।। मन-चिन्तित पदार्थोंको देनेवाला महान् पुण्यके पुंजके समान उज्ज्वल स्थिर रहने वाला वैभव प्राप्त होता है । सर्व रोगोंके समूहसे रहित नीरोग देह मिलती है, सभी सुखोंके समुदायसे युक्त निवास प्राप्त होता हैं ।।६३॥ सर्व मनोवांछित सम्पदाओंके देने में प्रवीण सम्यग्दर्शन ज्ञान और चारित्रकी विभूति प्राप्त होती है । तथा रात्रिभोजन त्यागी पुरुषके सर्व लोकोंके स्वामियोंसे पूजनीयता प्राप्त होती है ।।६४।।
जो स्त्री रात्रिमें भोजन करती हैं, वह मर कर रात्रि भोजनके पापसे भीलनी, वानरी, धीवरी, रोहिणी (गाय),कुकरी, सदा शोक और क्लेश भोगने वाली, अभागिनी,निःसन्तान, निर्धन और पति-रहित विधवा स्त्री होती है ॥६५।। जो स्त्री दिनमें भोजन करती हैं, वह उसके पुण्यसे पर भवमें बान्धवोंसे अचित, पुत्रोंसे वन्दित, भूषणोंसे आभूषित, व्याधियोंसे वर्जित, श्रीमती, लज्जावती, बुद्धिमती, धर्म करने वाली और सदा सुख भोगनेवाली स्त्री होती हैं ॥६६।। रात्रिभोजनका परित्याग करने वाले जीवोंके जिन महान् गुणोंकी प्राप्ति परभवमें होती है, उन्हें कहने के लिए तीन जगत्में एक जिननाथको छोडकर और कोई समर्थ नहीं है ।।६७।। अब आचार्य पंच उदुम्बर फलोंके खाने का निषेध करते हैं-जिनमें नाना प्रकारके सूक्ष्म शरीरके धारक सहस्रों प्राणी उत्पन्न होते हैं, एसे बड, पीपल, उम्बर और कटूम्बर इन पाँच प्रकार उदुम्बर फलोंको
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