________________
४२३
वसुनन्दि-श्रावकाचार जीवाजीवासव-बंध-संवरो णिज्जरा तहा मोक्खो। एयाइं सत्त तच्चाई सद्दहंतस्स' सम्मत्तं ॥१०
जीवतत्त्व-वर्णन सिद्धा संसारत्था दुविहा जीवा जिहि पप्णत्ता। असरीराणंतचउदय णिया णिव्वुदा सिद्धा ।।११ संसारत्था दुविहा थावर-तसभेयओ'मुणेयवा। पंचविह थावरा खिदिजलग्गिवाऊवणफ्फइणो।।१२ पज्जत्तापज्जत्ताबायर-सुहूमाणिगोद णिच्चियरा। पत्तेय. पइट्ठियरा थावरकाया अणेयविहा॥१३
वि-ति-चउ-पंचिदियभेयओ तसा चउन्विहा मुणेयव्वा ।
पज्जत्तियरा सणियरमेयओ हुँति बहुभेया ॥१४ आउ-कुल-जोणि-मग्गण-गुण-जीवुवओग पाण-सण्णाहिाणाऊण जीवदव्वं सदहणंहोइ कायव्वं। १५
अजीवतत्व-वर्णन दुविहा अजीवकाया उरूविणो अरूविणो मुणेयव्वा ।
खंधा देस-पएगा अविभागी रूविणो चदुधा ।१६ सयलं मुणेहि खंधं अद्धं देसो पएसमद्धद्धं । परमाणू अविभागी पुग्गलदव्वं जिणुद्दिट्ठ॥१७ पुढवी जलं च छाया चरिदियविसय-कम्म-परमाणू । अइथूलथूलं सुहुमं सुहुमंच' अइंसुहमं ॥१८ प्ररूपक हैं ।। ८-९ ।। जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष, ये सात तत्त्व कहलाते हैं
और उनका श्रद्धान करना सम्यक्त्त कहलाता है ।। १० ।। सिद्ध और संसारी, ये दो प्रकारके जीव जिनेन्द्र भगवान्ने कहे हैं। जो शरीर-रहित हैं, अनन्त-चतुष्टय अर्थात् अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख और अनन्त वीर्यसे संयुक्त हैं तथा जन्म-मरणादिकसे निवृत्त हैं, उन्हें सिद्ध जीव जानना चाहिए।११।। स्थावर और त्रसके भेदसे संसारी जीव दो प्रकारके जानना चाहिए। इनमें स्थावर जीव पाँच प्रकारके हैं-पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक वायुकायिक और वनस्पतिकायिक ।।१२।। पर्याप्त-अपार्याप्त, बादर-सूक्ष्म, नित्यनिगोद-इतरनिगोद, प्रतिष्ठितप्रत्येक और अप्रतिष्ठितप्रत्येकके भेदसे स्थावरकायिक जीव अनेक प्रकारके होते हैं ।।१३।। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियके भेदसे त्रसकायिक जीव चार प्रकारके जानना चाहिए। ये ही त्रस जीव पर्याप्त-अपर्याप्त और संज्ञी-असंज्ञी आदिक प्रभेदोंसे अनेक प्रकारके होते हैं ||१४|| आय, कूल, योनि, मार्गणास्थान. गणस्थान. जीवसमास, उपयोग, प्राण और संज्ञाके द्वारा जीवद्रव्यको जानकर उसका श्रद्धान करना चाहिए ।।१५।। (विशेष अर्थ के लिए परिशिष्ट देखिये) अजीवद्रव्यको रूपी और अरूपीके भेदसे दो प्रकारका जानना चाहिए । इनमें रूपी अजीवद्रव्य स्खंध, देश, प्रदेश और अविभागीके भेदसे चार प्रकारका होता हैं । सकल पुद्गलद्रव्यको स्कंध, स्कंधका आधे भागको देश, आधेके आधेको अर्थात् देशके आधेको प्रदेश और अविभागी अशको परमाणु जानना चादिए, ऐसा जिनेन्द्र भगवान्ने कहा है ॥१६-१७।। अतिस्थूल (बादर-ब दर), स्थूल (बादर), स्थूल-सूक्ष्म, सूक्ष्म और सूक्ष्-सूक्ष्म, इस प्रकार पृथिवी आदिकके छः भेद होते हैं ।। (इन छहोंके दृष्टान्त इस प्रकार हैं--पृथिवी अतिस्थूल पुद्गल है । जल स्थूल है । छाया स्थूल-सूक्ष्म है । चार इन्द्रियों के
१ध. सद्दहणं। २ ध.-ट्ठयणिया । ३ घ भेददो। ४ झ.ध. पयट्ठियरा। ५ द. ओय । ६ ध. रूविणोऽरूविणो। ७. द. ध. मुणेहि। ८. चकारात् 'सुहुमथूल' ग्राह्मम् । ९ मुद्रित पुस्तकमें इस गाथाके स्थानपर निम्न दो गाथाएं पाई जाती हैं --
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org