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श्रावकाचार-संग्रह
रुहिरामिसु चम्मट्टि सुर पच्चक्खिउ' बह जंतु । अंतराय पालह भविय दंसणसद्धिणिमित्त ॥३३ मूलउ णाली मिल्हसणु तुंबड करड कलिंगु । सूरणु फुल्लत्याणयहि, भक्खहि सणभंग । ३४
अण्णु जि मुललिउ फुल्लियउ, सायह चलियउ जं जि।
दो दिण वसियउ दहि महिउ ण हु भुजिज्जइ तं जि ॥३५ वे दल मीसिउ दहि महिउ जुत्त ण सावय होइ । खद्धइ सण-भंग पर सम्मत्तु वि मइलेइ ॥३६ तंबोलोसहि जल मुइवि अत्थम्मिए सूरि । भोग्गासण फल अहिलसई तं किउ दंसणदूरि ॥३७ जूएं धणहु ण हाणि पर वयह मि होइ विणासु। लग्गउ कट्ठ ण डहए पर इयरहं डहइ हुयासु।।३८ जइ देखेवउ छंडियउ ता जिय छडिउ जूउ । अह अग्गिहि उल्हावियइं अवसण अदुइ धूउ ॥३९ दय जि मूल धम्मंघियह सो उप्पाडिउ तेण । फल दलकुसुमहं कवण कह आभिसु भक्खिउ तेण ।। पिट्टि५-मंसु जइ छंडियउ ता जिय छंडिउ मांसु । जह अपथ्ये वारियए वारिउ बाहि पवेसु ।। ४१
मुहुवि लिहिवि मुत्तई सुणहु एहु जि मज्जहु दोसु ।
मत्तउ बहिणि जि अहिलसइ, ते तहु णरय पवेसु । ४२ भो खाता हैं, उसके भी सम्यग्दर्शनकी शुद्धि नहीं होती है ।।३२॥ रुधिर, मांस, चर्म, अस्थि, मदिरा, प्रत्याख्यात (त्यागी) वस्तु और वहुत जन्तुओंसे परिपूर्ण वस्तुका सम्यग्दर्शनकी शद्धिके निमित्त हे भव्य, अन्तराय पालन करना चाहिए । अर्थात् भोजनके समय उक्त वस्तुओंके थालीमें आते ही भोजनका त्याग कर देना चाहिए ॥३३॥ कन्दमूल,कमलनाल,कमल-मूल (जड), लहसुन, तुम्बा, करड, कलिंग, सूरण, फूल और अथाना (अचार) इनके भक्षण करनेपर सम्यग्दर्शनका भंग होता हैं ।।३४।। इसी प्रकार अन्य जो सुले धुने, पुष्पित, अकुरित एवं स्वाद-चलित जो-जो पदार्थ हैं,उन्हें भी नहीं खाना चाहिए,तथा दो दिनका बासी दही और मही (छांछ ) भी नहीं खाना चाहिए ॥३५।। द्विदल-मिश्रित दही और मही भी श्रावकके खाने योग्य नहीं हैं। इनके खानेसे सम्यग्दर्शनका भंग होता है और सम्यक्त्व रहे भी, तो वह मलिन हो जाता हैं ।।३६।।
ताम्बूल, औषधि और जलको छोडकर जो सूर्यके अस्तंगत होनेपर भोज्य, अशन और फलाहारकी अभिलाषा करते हैं, वे अपनेसे सम्यग्दर्शनको दूर करते हैं ॥३७॥
जुआ खेलनेसे केवल धनकी ही हानि नहीं होती, पर व्रतोंका भी विनाश होता हैं । काठमें लगी हुई अग्नि केवल उसे ही नहीं जलाती हैं, किन्तु दूसरोंको भी जला देती है॥३८॥ यदि जुआका देखना भी छोड दिया, तो हे जीव, जूआका खेलना छूट गया। जैसे अग्निके बुझा देनेपर अवश्य ही धुंआ नहीं उठता है ।।३९॥
धर्मरूपी वृक्षका मूल दया ही हैं । जिसने उसे जडमूलसे उखाड डाला, वहाँ पर धर्मरूपवृक्षके पत्र, फल और पुष्पोंकी कथा कहाँ संभव है। ऐसे मनुष्यने तो मांस ही भक्षण कर लिया समझना चाहिए ॥४०॥ जिसने दाल आदिकी पीठीरूप मांस का खाना छोड दिया उस जीवने मांस को छोड दिया, ऐसा समझना चाहिए। जैसे अपथ्य-सेवनके निवारणसे व्याधिका प्रवेश निवारण हो जाता हैं ॥४१॥
___मदिरा पीनेवाले बेहोश मनुष्यका मुख चाँट कर कुत्ता भी मुखमें मूत जाता है, यह मद्यपानका महा दोष है । मदिरा पानसे उन्मत्त हुआ पुरुष अपनी बहिनको भी काम-सेवनके लिए
१ ब. नियम युक्तवस्तुनियमभंगे सति । २ ब जन्तोर्वधं दृष्टा । ३ ब 'ढिस' पाठः । टि पद्मिनीकन्दम् । ४ ब धमीहिपस्य | म. पुट्टि । ब. पिष्टेन निष्पादितम् ।
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