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हरिश्चन्द्र
हरिश्चन्द्र थे सत्य के व्रती एक भूपाल । सानुराग जीवन सुनें, कटें पाप के जाल ॥
आदि - काल में ऋषभदेव ने, कहाँ धर्म - ध्वज फहराया ? कर्म-विमुख जनता को सत्पथ, कर्म - योग का, बतलाया ? कहो कौनसी नगरी है वह, जहाँ भरत का शासन था ? सुखी प्रजा को जहाँ तुच्छतमकभी स्वर्ग - सिंहासन था ? भारत का यह कौशल जनपद, यही अयोध्या नगरी है। सरयू की कल-कल जलधारा । बहती कितनी सुथरी है ॥ लक्ष्मी ने श्रृंगार अनूठा, क्या सब ओर सजाया है ! स्वर्ग-लोक की अलका का भी, लख सौभाग्य लजाया है । सूर्यवंश · धर हरिश्चन्द्र हैं, राज - मुकुट के अधिकारी। प्रजा पुत्र - सम पालन करते, नीति • युक्त शुद्धाचारी ॥
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