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परिकर्मद्वार - अर्ह नामक अंतरद्वार-वंकचूल की कथा
श्री संवेगरंगशाला ही अभी भी इस प्रसंग का स्मरण करते मेरे नेत्रों में आँसू के एकमात्र प्रवाह को भी मैं रोक नहीं सकता हूँ। हे बहन! तूं किस कारण से इस तरह पुरुष का वेश धारण करके भाभी के साथ सोई थी ? वह मुझे कह।
उसने कहा- भाई! आप विजय यात्रा के लिए गये थे उस समय यहाँ नट आये, उन्होंने मुझसे पूछा ।। १०००।। यहाँ पल्लीपति है या नहीं? तब मैंने सोचा कि यदि ना कह दूंगी तो वह सुनकर किसी शत्रु का आदमी आपके साथ गाढ़ वैर रखने वाले सीमा के राजाओं को कह दे तो और वे अवसर पाकर पल्ली में उपद्रव करें, ऐसा नहीं बनें इस कारण से मैंने कहा, पल्ली के मुकुट की मणि वह स्वयं वंकचूल यहाँ है, केवल वे अन्य कार्य में रुके हुए हैं। फिर उन्होंने मुझसे पूछा नाटक कब दिखायें? मैंने कहा - रात्रि को, कि जिससे वे शान्तिपूर्वक देख सकें। उन्होंने उसी तरह ही रात्रि को नाटक प्रारम्भ किया, इससे मैं पुरुष का सुन्दर वेश धारण करके तुम्हारे समान बनकर भाभी के साथ वहाँ बैठी। फिर मध्य रात्री के समय नटों को देने योग्य दान देकर निद्रा से घिरी हुई आँखों वाली मैं भाभी के साथ सो गयी, इससे अधिक में कुछ भी नहीं जानती, केवल आवाज सुनकर 'भाई चिरकाल जीओ' ऐसा बोलती मैं जागृत हुई। ऐसा सुनकर कुछ प्रशान्त शोक वाला बार-बार 'इन नियमों का यह फल है' ऐसा चिन्तन करते गुरुदेव का उपकार मानते हुए । समय व्यतीत करने लगा।
परिवार बिना का वह गांव, नगर आदि लूटने में असमर्थ हो जाने से, तथा धन बिना परिजन को भूख से पीड़ित देखकर संताप वाला बना अब 'सेंध खोदे बिना मुझे दूसरा जीने का कोई उपाय नहीं है' ऐसा निश्चय करके वह अकेला ही उज्जैन नगर में गया, वहाँ धनिक लोगों के मकान में आने-जाने की खिड़की के दरवाजे को देखकर उसने चोरी करने के लिए एक बड़े घर में प्रवेश किया, वह मकान केवल बाहर की आकृति से सुन्दर दिखता था परन्तु उस घर में केवल स्त्रियों को परस्पर झगड़ते देखा। इससे उसने विचार किया कि ये झगड़ रही हैं, अतः निश्चय ही इस घर में बहुत धन नहीं है क्योंकि लोक में भी यह प्रसिद्ध है कि 'अधजल गगरी छलकत जाये'। धन अल्प होने पर चोरी करने से मुझे क्या सम्पत्ति मिलेगी ? बहुत बड़े बिन्दु से कोई समुद्र भर जाता है ? ऐसा विचारकर उसी समय उस घर को छोड़कर, महान आशय वाला वह सारे नगर में प्रसिद्ध देवदत्ता वेश्या के घर पहुँचा और सेंध गिराने में श्रेष्ठ अभ्यासी वह सेंध खोदकर वहाँ रत्नों से रमणीय दिवारवाला और हमेशा जगमगाहट दीपक वाले वासगृह में प्रवेश किया, वहाँ उसने उस गणिका को अत्यंत कोढ़ रोग से निर्बल और भयंकर शरीर वाले एक पुरुष के साथ में शय्या के अन्दर सुखपूर्वक सोई हुई देखा । अरे रे ! देखो ऐसी महान धन वाली भी यह अनार्य वेश्या धन के लिए इस तरह कोढ़ी का भी आदर कर रही है। अथवा तो मैं अनार्य हूँ जो कि इसके पास से भी धन लेने की इच्छा रखता हूँ । अतः यह धन योग्य नहीं है, बड़े धनाढ्य के घर जाऊँ! ऐसा विचार कर समग्र व्यापारियों में मुख्य सेठ के घर सेंध खोदकर धीरे से मकान में गया, वहाँ दो हाथ से कलम और बही पकड़ कर पुत्र के साथ क्षण-क्षण का भी हिसाब को पूछते सेठ को देखा। और वहाँ हिसाब में एक पैसा कम था वह किसी तरह नहीं मिलने से रोष से भरे हुए सेठ ने पुत्र से कहा- अरे कुल का क्षय करने वाले काल! मेरी दृष्टि से दूर हट जा, एक क्षण भी घर में नहीं रहना । इतना बड़ा धन का नाश मैं अपने बाप का भी सहन नहीं करूँगा । ऐसा बोलते और प्रचण्ड क्रोध से लाल आँखों के क्षोभवाले उसे देखकर आश्चर्यपूर्वक पल्लीपति ने विचार किया कि - यदि एक पैसे का नाश देखकर पुत्र को भी निकाल देना चाहता है अब यदि घर में चोरी हुई जानेगा तो निश्चय धन का नाश होने से हृदय आघात द्वारा मर जायगा, इसलिए इस तरह कृपण के बाप को मारना योग्य नहीं है। अतः राजमहल में जाकर वहाँ से इच्छानुसार ग्रहण करूँ, हाथी की प्यास अति अल्प झरने के पानी से शान्त नहीं होती है। उसे ऐसा सोचते हुए रात्री पूर्ण हो गयी और पूर्व दिशा
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