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श्री संवेगरंगशाला
समाधि लाभ द्वार-ग्यारहवाँ चार शरण द्वार
तथा मोक्ष में एक बद्ध लक्ष्य वाले, संसारिक सुख से वैरागी चित्त वाले, अति संवेग से संसारवास प्रति सर्व प्रकार से थके हुए और इससे ही स्त्री, पुत्र, मित्र आदि के प्रति चित्त के बंधन से रहित तथा घरवास की सर्व आसक्ति रूप चित्त के बंधन से भी सर्वथा रहित, सर्व जीवों को आत्म तुल्य मानने वाले, अत्यंत प्रशमरस से भीगे हुए सर्व अंग वाले निर्ग्रन्थ साधुओं की, हे सुंदर मुनि! तूं शरण स्वीकार कर।
इच्छा-मिच्छा आदि, प्रतिलेखना, प्रमार्जना आदि, अथवा दशविध चक्रवाल समाचारी प्रति अत्यंत रागी, दो, तीन, चार अथवा पाँच दिन या अर्द्ध मास उपवास आदि तप के विविध प्रकारों में यथा शक्ति उद्यमी, उपमा से पद्मादि तुल्य, पाँच समिति के पालन में मुख्य रहने वाले, पाँच प्रकार के आचारों को धारण करने वाले, धीर और पाप को उपशम करने वाले साधुओं की, हे सुंदर मुनि! तूं शरण स्वीकार कर।
__और गुणरूपी रत्नों के महानिधान रूप, समस्त पाप व्यापार से विरति वाले, स्नेह रूपी जंजीर को तोड़ने वाले, संयम के भार को उठाने में श्रेष्ठ, वृषभ तुल्य, क्रोध के विजेता, मान को जीतने वाले, माया को जीतने वाले,
और लोभरूपी सुभट के विजयी, राग, द्वेष और मोह को जीतने वाले, जितेन्द्रिय, निद्रा का विजय करने वाले, मत्सर के विजेता, मद के विजेता, काम के विजेता और परीषह की सेना को जीतने वाले साधु भगवंतों की, हे सुंदर मुनि! तूं शरण स्वीकार कर।
वांसले और चंदन में समान वृत्ति वाले, सन्मान और अपमान में समान मन वाले, सुख-दुःख में समचित्त वाले, शत्रु-मित्र में समचित्त वाले, तथा स्वाध्याय, अध्ययन में तत्पर, परोपकार करने में केवल एक व्यसन वाले, उत्तरोत्तर अति विशुद्ध भाव वाले, सम्यग् रूप में आश्रव द्वार को बंद करने वाले, मन से गुप्त, वचन से गुप्त, काया से गुप्त और प्रशस्त लेश्या वाले श्री श्रमण भगवंतों की, हे सुंदर मुनि! तूं शरण स्वीकार कर।
नौ कोटि प्रकार से विशुद्ध, प्रमाणोपेत, विगइयों की विशेषता रहित आहार लेते हैं, वह भी राग, द्वेष बिना छः कारणों के कारण श्रमण वृत्ति से पवित्र, निष्पाप, वह भी एक बार विरस और साधुजन के योग्य आहार करने की इच्छा वाले, सूखा, लूखा और अप्रतिकर्मित (लेने वाले)-शुश्रूषारहित शरीर वाले, द्वादशांगी के जानकार साधुओं की तूं शरण स्वीकार कर।
तथा संवेगी, गीतार्थ, निश्चय वृद्धि प्राप्त करते चरण-करण गुण वाले, संसार के परिभ्रमण में कारणभूत प्रमाद स्थानों का त्याग करने के लिए उद्यमी, अनुत्तर विमानवासी देवों की तेजोलेश्या का भी उल्लंघन करने वाले, मन,वचन, काया के क्लेशों का नाश करने वाले, सकल परिग्रह के सर्वथा त्यागी बुद्धिमंत, गुणवान, श्रीमंत, शीलवंत एवं भगवंत श्री श्रमण मुनियों की, हे सुंदर मुनि! तूं शुद्ध भाव से शरण स्वीकार कर।
जैन धर्म का स्वरूप और शरण स्वीकार :- सर्व अतिशयों के निधान रूप, अन्य मत के समस्त शासन में मुख्य, सुंदर विचित्र रचना वाला, निरुपम सुख का कारण, अव्यवस्थित कष, छेद, ताप से रहित, शास्त्र श्रवण से, दुःख से पीड़ित जीवों को दुन्दुभिनाद सदृश आनंद देने वाला, रागादि का नाश करने वाला पटह, स्वर्ग और मोक्ष का मार्ग और भयंकर संसाररूपी कुएँ में पड़ते, जगत का उद्धार करने में समर्थ, रस्सी समान, सम्यग् जैन धर्म की, हे सुंदर मुनि! तूं शरण स्वीकार कर।
और महामति वाले मुनियों ने जिसके चरणों में नमन किया है उन तीर्थनाथ श्री जिनेश्वरों ने मुनिवरों को जो ध्येय रूप में उपदेश दिया है वह मोह का नाश करने वाला है ।।८३०० ।। अति सूक्ष्म बुद्धि से समझ में आये इस प्रकार आदि-अंत से रहित शाश्वत, सर्व जीवों का हितकर, जिसमें सद्भूत अथवा यथार्थ भावना, विचारणा है, अमूल्य, अमित, अजित, महा अर्थवाला, महा महिमा वाला, महा प्रकरण युक्त, अथवा अति स्पष्ट
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