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समाधि लाभ द्वार-बारहवाँ दुष्कृत गर्या द्वार
श्री संवेगरंगशाला द्वेष से परवश चित्त वाले मोह मूढ़ तूंने दृढ़तापूर्वक मंत्र, तंत्र प्रयोग किये, योजना बनाकर दूसरों को अत्यंत पीड़ाकारी स्तंभन मंत्र से स्थिर किया हो, स्थान भ्रष्ट करवाना, विद्वेष करवाना, वशीकरण करना, इत्यादि किसी प्रकार जिन-जिन जीवों को इस जन्म में या अन्य जन्मों में स्वयं अथवा पर द्वारा उस कार्य को किया हो उसका भी त्रिविध-त्रिविध खमत खामणा कर ।।८४५५।। क्योंकि यह तेरा क्षमापना का समय है। तथा भूत आदि हल्के जाति के देवों को भी मंत्र, तंत्रादि की शक्ति के प्रयोग से किसी तरह कभी भी कहीं पर भी बलात्कार से आकर्षण कर, आज्ञा देकर, अपना इष्ट करवा कर पीड़ा दिलवाई अथवा किसी व्यक्ति में प्रवेश करवाया अथवा व्यक्ति में उतारकर यदि किसी भी देवों को स्तंभन किया हो, ताड़न करके उस व्यक्ति में से छुड़ाया हो इत्यादि इस जन्म या अन्य जन्मों में, स्वयं या पर द्वारा इस तरह किया हो उसकी भी त्रिविध-त्रिविध क्षमापना कर। क्योंकि यह तेरा खमत खामना का समय है। इस तरह मनुष्य जीवन काल में तिर्यंच, मनुष्य और देवों की विराधना को क्षमा करके हे क्षपक मुनि! देवत्व में जिस प्रकार विराधना की उन जीवों से सम्यक् क्षमा याचना कर ।।८४५९।। वह इस प्रकार :
भवनपति, वाण व्यंतर, और वैमानिक आदि देव जीवन प्राप्तकर तूंने यदि नरक, तिर्यंच और मनुष्यों या देवों को दुःखी किया, उनको राग द्वेष रहित मध्यस्थ मन वाला होकर हे क्षपक मुनि! तूं भावपूर्वक त्रिविधत्रिविध क्षमापना कर। क्योंकि यह तेरा खमत खामणा का समय है। उसमें परमाधामी जीवन प्राप्त कर तूंने नारको को यदि अनेक प्रकार से दुःख दिया हो, उसकी भी क्षमा याचना कर। और देव जीवन में राग-द्वेष और मोह से तूंने उपभोग परिभोग आदि के कारण से पृथ्वीकाय आदि की तथा उसके आधार पर रहे द्वीन्द्रियादि जीवों की यदि विराधना क
हो. उसकी भी सम्यक क्षमापना कर। क्योंकि यह तेरा खमत खामणा का समय है। और देव जीवन में ही वैर का बदला लेना आदि कारण से कषाय द्वारा कलुषित होकर यदि तूंने मनुष्यों का अपहरण किया हो अथवा बंधन, वध, छेदन, भेदन, धन हरण या मरण आदि द्वारा कठोर दुःख दिया हो उसकी भी सम्यक् क्षमा याचना कर। क्योंकि यह तेरा क्षमापना का समय है। तथा देवत्व में ही महर्द्धिक जीवन से अन्य देवों को जबरदस्ती आज्ञा पालन करवायी हो, वाहन रूप में उपयोग किया हो, ताड़ना या पराभव किया इत्यादि चित्त रूपी पर्वत को चूर्ण करने में एक वज्र तुल्य यदि महान् दुःख दिया हो, उसकी भी सम्यक् क्षमापना कर। क्योंकि यह तेरा खमत खामणा का समय है। इस तरह नारक, तिथंच, मनुष्य और देवों के जीव को खामणा करके अब तूं पाँच महाव्रतों में लगे हुए भी प्रत्येक अतिचारों का त्याग कर जगत के सूक्ष्म या बादर सर्व जीवों का इस जन्म में या पर जन्मों में अल्प भी दुःख दिया हो, उसकी भी निंदा कर। जैसे कि :
अज्ञान से अंधा बना हुआ तूंने प्राणियों को पीड़ा-हिंसा की हो और प्रद्वेष या हास्यादि से यदि असत्य वचन कहा हो, उसकी भी निंदा कर। पराया, नहीं दी हुई वस्तु को यदि किसी प्रकार लोभादि के कारण ग्रहण करना, नाश करना इत्यादि बढ़ते हुए पाप रज को भी गर्दा द्वारा हे भद्र! दूर कर दो। मनुष्य तिर्यंच और देव संबंधी भी मन, वचन, काया द्वारा मैथुन सेवन से यदि किसी प्रकार का पाप बंध हुआ हो, उसकी भी त्रिविध-त्रिविध निंदा कर। सचित्त, अचित्त आदि पदार्थों में परिग्रह-मूर्छा करते यदि तूंने पाप बंध किया हो, उसकी भी हे क्षपक मुनि! त्रिविध-त्रिविध निंदा कर। तथा रस गृद्धि से अथवा कारणवश या अज्ञानता से भी कभी कुछ भी जो रात्री भोजन किया हो, उन सर्व की भी अवश्य निंदा कर। भूत, भविष्य या वर्तमान काल में जीवों के साथ में जिस प्रकार वैर किया हो, उन सर्व की भी निंदा कर। तीनों काल में शुभाशुभ पदार्थों में यदि मन, वचन, काया की अकुशलता रूप प्रवृत्ति की हो, उसकी भी निंदा कर। द्रव्य, क्षेत्र, काल अथवा भाव के अनुसार शक्य होने पर
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