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समाधि लाभ द्वार-भावना पटल नामक चौदहवाँ द्वार-वणिक पुत्र की कथा
श्री संवेगरंगशाला वंत साना-सोना है, वैसे इन शास्त्रों में जैसे साधु गुण कहे हैं उससे युक्त हो वही साधु है। और वर्ण के साथ में अन्य गुण नहीं होने से जैसे कृत्रिम सोना सोना नहीं है वैसे साधु गुण से रहित, जो साधुवेश लेकर भिक्षा के लिए फिरता है, वह साधु नहीं है। साधु के निमित्त किया हुआ खाये, छहकाय जीवों का नाश करने वाला, जो घर मकान तैयार करें, करावे और प्रत्यक्ष जलचर जीवों को जो पीता (सचित्त जल पीने वाला) हो उसका उपयोग करता हो उसे साधु कैसे कह सकते हैं?
इसलिए कष आदि अन्य गुणों को अवश्यमेव यहाँ जानना चाहिए और इन परीक्षाओं द्वारा ही यहाँ साधु की परीक्षा करनी चाहिए। इस शास्त्र में जो साधु गुण कहे हैं उनका अत्यंत सुपरिशुद्ध गुणों द्वारा मोक्ष सिद्धि होती है, इस कारण से जो गुण वाला हो वही साधु है।
गुरु
परीक्षा कैसे - इस प्रकार मोक्ष साधक गुणों का साधन करने से जिसे साधु कहा है, वही धर्मोपदेश देने भी है। इसलिए अब सब लोगों की सविशेष ज्ञान करवाने के लिए संपूर्ण साधु के गुण समूह रूपी रत्नों से शोभित शरीर वाले भी गुरु की परीक्षा किस तरह करनी उसे कहते हैं। पुनः उस परीक्षा से यदि साधु परलोक के हित से पराङ्मुख हो, केवल इस लोक में ही लक्ष्य बुद्धि वाला और सद्धर्म की वासना से रहित हो तो उसे परीक्षा करने का अधिकार नहीं है और जो लोक व्यवहार से देव तुल्य गिना जाता हो तथा अति दुःख से छोड़ने वाले माता, पिता को भी छोड़कर, किसी भी पुरुष को गुरु रूप में स्वीकार करके श्रुत से विमुख अज्ञानी मात्र गडरिया प्रवाह के अनुसार प्रवृत्ति करनेवाला और धर्म का अर्थी होने पर भी स्व बुद्धि अनुसार कष्टकारी क्रियाओं में रुचि करने वाला, स्वेच्छाचारी सन्मार्ग में चलने की इच्छावाला हो, अथवा दूसरे को चलाता हो, फिर भी इस प्रकार के साधु का भी यहाँ विषय नहीं है। परंतु निश्चय रूप से जिसने संसार की निर्गुणता का यथार्थ चिंतन किया हो, जिसको संसार के प्रति वैराग्य हुआ हो और सद्धर्म के उपदेशक गुरु महाराज की खोज करता हो, उस आत्मा का विषय है, उसे परीक्षा का अधिकार है। इसलिए भवभय से डरा हुआ और सद्धर्म में एक लक्ष्य वाला भव्यात्मा को दरिद्र जैसे धनवान को, और समुद्र में डूबनेवाला जैसे जहाज की खोज करता है, वैसे इस संसार में परम पद मोक्ष नगर के मार्ग में चलते प्राणियों को परम सार्थवाह समान और सम्यग् ज्ञानादि गुणों से महान् गुरु की बुद्धिपूर्वक परीक्षा करनी चाहिए। जैसे जगत में हाथी, घोड़े आदि अच्छे लक्षणों से श्रेष्ठ गुण वाले माने जाते हैं, वैसे गुरु भी धर्म में उद्यमशील आदि लक्षणों से श्रेष्ठ गुरु जानना । इस मनुष्य जन्म में जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों को साधने वाला होता है, वह सद्गुरु के उपदेश से कष्ट बिना प्राप्त करता है। इस जगत में उत्तम गुरु के योग से कृतार्थ बना हुआ योगी विशिष्ट ज्ञान से पदार्थों का जानकार बनता है। और शापबददुआ देने से दूर तथा अनुगृह करने में चतुर बनता है। तीन भवन रूपी प्रासाद में विस्तरित अज्ञान रूपी अंधकार के समूह को नाश करने के लिए समर्थ सम्यग् ज्ञान से चमकते रूपवान, पाप रूपी तितली को क्षय करने में कुशल और वांछित पदार्थ को जानने में तत्पर गुरु रूपी दीपक न हो तो यह बिचारा अन्धा, बहरा जगत कैसा होता - क्या करता ? ।। ८८७५ ।।
जैसे उत्तम वैद्य के वचन से व्याधि संपूर्ण नाश होती है, वैसे सद्गुरु के उपदेश से कर्म व्याधि भी नाश होती है ऐसा जानना। कलिकाल युक्त इस जगत में, विविध वांछित फलों को देने में व्यसनी, अखंड गुणवाले ऐसे गुरु महाराज साक्षात् कल्पवृक्ष के समान हैं। संसार समुद्र को तैरने में समर्थ और मोक्ष के कारणभूत सम्यक्त्व ज्ञान और चारित्र आदि गुणों से जो महान् है वे गुरु भगवंत हैं। आर्य देश, उत्तम कुल, विशिष्ट जाति, सुंदर रूप आदि गुणों से युक्त, सर्व पापों के त्यागी और उत्तम गुरु ने जिनको गुरु पद पर स्थापना किया है, उस
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