Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal

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Page 392
________________ समाधि लाभ द्वार-इन्द्रिय दमन नामक सोलहवाँ द्वार श्रोत्रेन्द्रिय की आसक्ति का दृष्टांत श्री संवेगरंगशाला में आसक्त होने से उत्तम शील और गुण रूपी दो पंख के बिना का जीव हो जाता है और वह कटे पंख वाले पक्षी के समान संसार रूपी भयंकर गुफा में गिरता है। जैसे मधु लगी तलवार धार को चाटते पुरुष सुख मानता है, वैसे भयंकर भी इन्द्रियों के विषय सुख का अनुभव करते जीव सुख मानता है। अच्छी तरह खोज करने पर भी जैसे केले के पेड़ में कहीं सार रूप काष्ठ नहीं मिलता है, वैसे इन्द्रिय विषयों में अच्छी तरह खोज करने पर भी सुख नहीं मिलता है। जैसे तेज गरमी के ताप से घबराकर शीघ्र भागकर पुरुष तुच्छ वृक्ष के नीचे अल्प छाया को सुख मानता है, वैसे ही इन्द्रिय जन्य सुख भी जानना । अरे! चिरकाल तक पोषण करने पर भी इन्द्रिय समूह किस तरह आत्मीय हो सकती है? क्योंकि विषयों में आसक्त होते ही वे शत्रु से भी अधिक दुष्ट बन जाती हैं। मोह से मूढ़ बना हुआ जो जीव इन्द्रियों के वश होता है उसकी आत्मा ही उसे अति दुःख देने वाली शत्रु है। श्रोत्रेन्द्रिय से भद्रा, चक्षु के राग से समरधीर राजा, घ्राणेन्द्रिय से राजपुत्र, रसना से सोदास ने पराभव को प्राप्त किया तथा स्पर्शनेन्द्रिय से शतवार नगरवासी पुरुष का नाश हुआ। इस तरह वे एक-एक इन्द्रिय से भी नाश हुए हैं तो जो पाँचों में आसक्त है उसका क्या कहना ? ।। ९००० ।। इन पाँचों का भावार्थ संक्षेप से क्रमशः कहता हूँ । उसमें श्रोत्रेन्द्रिय संबंधी यह दृष्टांत जानना । श्रोत्रेन्द्रिय की आसक्ति का दृष्टांत वसंतपुर नगर में अत्यंत सुंदर स्वरवाला और अत्यंत कुरूपी, अति प्रसिद्ध पुष्पशाल नाम का संगीतकार था। उसी नगर में एक सार्थवाह रहता था। वह परदेश गया था और भद्रा नाम की उसकी पत्नी घर व्यवहार की सार संभाल लेती थी, उसने एकदा किसी भी कारण से अपनी दासियों को बाजार में भेजा और वे बहुत लोगों के समक्ष किन्नर समान स्वर से गाते पुष्पशाला के गीत की ध्वनि सुनकर दीवार में चित्र हो वैसे स्थिर खड़ी रह गयीं। फिर लम्बे काल तक खड़ी रहकर अपने घर आयी अतः क्रोधित होकर भद्रा ने कठोर वचन से उन्हें उपालंभ दिया। तब उन्होंने कहा कि -स्वामिनी ! आप रोष मत करो। सुनो ! वहाँ हमने ऐसा गीत सुना कि जो पशु का भी मन हरण करता है तो अन्य का क्या कहना ? भद्रा ने कहा कि - किस तरह? दासियों ने सर्व निवेदन किया। तब भद्रा ने विचार किया कि - उस महाभाग का दर्शन किस तरह करूँ? फिर एक दिन देवमंदिर की यात्रा प्रारंभ हुई, इससे सभी लोग जाते हैं और दर्शन करके फिर वापस आते हैं। दासियों से युक्त भद्रा भी सूर्य उदय होते वहाँ गयी, तब गाकर अति थका हुआ उस देवमंदिर के नजदीक में सोये हुए पुष्पशाल को दासियों ने देखा और भद्रा से कहा कि यह वह पुष्पशाल है। फिर चपटी नाकवाला, बीभत्स होठ वाला, बड़े दांत वाला और छोटी छातीवाला उसे देखा, 'हूँ' ऐसे रूप वाले के गीत को भी देख लिया, इस तरह बोलती भद्रा ने अत्यंत उल्टे मुख से तिरस्कारपूर्वक थूका और उठे हुए पुष्पशाल को दूसरे नीच लोगों ने भद्रा द्वारा कही गयी सब बातें कही। इसे सुनकर क्रोधाग्नि से जलते सर्व अंग वाला वह पुष्पशाल हा धिक्! निर्भागिणी उस वणिक् की पत्नी भी क्या मुझे देखकर हंसती है ? इस तरह अतुल रोष के आधीन अपने सर्व कार्य को भूल गया और उसका अपकार करने की इच्छा से भद्रा के घर पहुँचा, फिर सुंदर स्वर से अत्यंत आदरपूर्वक गये पति वाली स्त्री का वृत्तांत इस तरह गाने लगा जैसे कि - सार्थवाह बार- बार तेरे वृत्तांत को पूछता है, हमेशा पत्र भेजता है, तेरा नाम सुनकर अत्यंत प्रसन्न होता है, तेरे दर्शन के लिए उत्सुक हुआ वह आ रहा है और घर में प्रवेश करता है इत्यादि उसने उसके सामने इस तरह गाया कि जिससे उसने सर्व सत्य माना और अपना पति आ रहा है, ऐसा समझकर एकदम खड़ी होकर होश भूल गई, अतः खयाल नहीं रहने से आकाश तल से स्वयं नीचे गिर पड़ी। अति ऊँचे स्थान से गिर जाने से मार लगने से जीव निकल गया। श्री जिनेश्वर के 375 www.jainelibrary.org. Jain Education International For Personal & Private Use Only

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