Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal

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Page 413
________________ श्री संवेगरंगशाला समाधि लाभ द्वार-कवच नामक चौथा द्वार समाधि के द्वारा अंतकृत केवली होकर मोक्ष गये। तीन जगत में अद्वितीय मल्ल-अनंत बली भगवान श्री महावीर देव ने बारह वर्ष विविध उपसर्गों के समूह को सम्यक् सहन किया। भगवान सनत्कुमार ने खुजली, ज्वर, श्वास. शोष. भोजन की अरुचि, आँख में पीडा और पेट का दर्द ये सात वेदना सात सौ वर्ष तक सहन की। माता के वचन से पुनः चेतना-ज्ञान वैराग्य को प्राप्त कर शरीर की अति कोमलता होने से चिरकाल चारित्र के पालन में असमर्थ भी धीर भगवान अरणिक मुनि भी अग्नि तुल्य तपी हुई शीला पर पादपोपगमन अनशन करके रहे और केवल एक ही मुहूर्त में सहसा शरीर को गलते हुए श्रेष्ठ समाधि में काल धर्म प्राप्त किया। हेमंत ऋतु में रात्री में वस्त्र रहित शरीरवाले, तपस्वी सूखे शरीर वाले, नगर और पर्वत के बीच मार्ग में आस-पास काउस्सग्ग में रहे श्री भद्रबाहु सूरि के चार शिष्यों का शरीर शीत लहर से चेष्टा रहित हो गया फिर भी समाधि से सद्गति को प्राप्त की, उनको हे सुंदर! क्या तूंने नहीं सुना? उस काल में कुंभकार कृत नगर में महासत्त्व वाले आराधना करते खंदक सूरि के भाग्यशाली पाँचसौ शिष्यों को दंडक राजा के पुरोहित पापी पालक ब्राह्मण ने कोल्हू में पीला था, फिर भी समाधि को प्राप्त किया था। क्या तूंने नहीं सुना? भद्रिक, महात्मा कालवैशिक मुनि बवासीर के रोग से तीव्र वेदना भोगते हुए विचरते मुद्गल शैल नगर में गये, वहाँ उनकी बहन ने बवासीर की औषधी देने पर भी उसे दुर्गति का कारण मानकर चिकित्सा न कर, चारों आहार का त्याग करके, एकांत प्रदेश में काउस्सग्ग में रहे और वहाँ तीव्र भूख से 'खि-खि' आवाज करती बच्चों के साथ सियारणी आकर उनका भक्षण करने पर भी आराधक बनें ।।९५४९।। तथा जितशत्रु राजा के पुत्र कुमार अवस्था में दीक्षित हुए थे। उनका नाम भद्र मुनि था। वे विहार करते शत्रु के राज्य में श्रावस्ती नगर में गये। वहाँ किसी राजपुरुषों ने जाना और पकड़कर मारकर चमड़ी छीलकर चोट में नमक भरकर दर्भ घास लपेटकर छोड़ दिया। उस समय उनको अतीव महा वेदना हुई, फिर भी उसे सम्यक् सहन करते समाधिपूर्वक ही काल धर्म प्राप्त किया। एक साथ में अनेक अति तीक्ष्ण मुख वाली चींटियाँ भगवान चिलाती पुत्र को खाने लगीं, उनकी वेदना सहन करते समाधि मरण को स्वीकार किया। प्रभु की भक्ति से सुनक्षत्र मुनि और सर्वानुभूति मुनि ने गोशाले को हित शिक्षा दी थी परंतु उसे सुनकर क्रोधायमान होकर गोशाले ने उसी समय प्रलय काल के अग्नि समान तेजोलेश्या से उन्हें जलाया फिर भी उन दोनों मुनि ने आराधना कर समाधि मरण प्राप्त किया। तथा हे सुंदर! क्या तूंने उग्र तपस्वी, गुण के भंडार, क्षमा करने में समर्थ उस दंड राजा का नाम नहीं सुना? कि मथुरापुरी के बाहर यमुनावंक उद्यान में जाते दुष्ट यमुना राजा ने उस महात्मा को आतापना लेते देखकर पापकर्म के उदय से क्रोध उत्पन्न हुआ तीक्ष्ण बाण की अणी द्वारा मस्तक ऊपर सहसा प्रहार किया और उनके नौकरों ने भी पत्थर मारकर उसके ऊपर ढेर कर दिया फिर भी आश्चर्य की बात है कि उस मुनि ने समाधि से उसे अच्छी तरह से सहन किया कि जिससे सर्व कर्म के समह को खत्म कर अंतकृत केवली हए ।।९५५९।। अथवा क्या कौशाम्बी निवासी यज्ञदत्त ब्राह्मण का पुत्र सोमदेव का तथा उसका भाई सोमदत्त का नाम नहीं सुना? उन दोनों ने श्री सोमभूति मुनि के पास में सम्यग् दीक्षा लेकर संवेगी और गीतार्थ हुए। फिर विचरते हुए प्रतिबोध देने के लिए उज्जैन गये और माता, पिता के पास पहुंचे। वहाँ ब्राह्मण भी अवश्यमेव शराब पीते थे। बुजुर्गों ने मुनियों को अन्य द्रव्यों से युक्त शराब दिया और साधुओं ने अज्ञानता से 'अचित्त पानी ही है' ऐसा मानकर साधुओं ने उसे विशेष प्रमाण में पीया और उनको शराब का असर हुआ और काफी पीड़ित हुए, फिर उसका विकार शांत होते सत्य को जानकर विचार करने लगे कि-धिक्कार है कि महा प्रमाद के कारण ऐसा यह अकार्य किया। इस तरह वैराग्य को प्राप्त कर महाधीरता वाले उन्होंने चारों आहार का त्यागकर नदी के किनारे पर अति 396 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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