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समाधि लाअ द्वार-बारहवाँ दुष्कृत गर्दा द्वार
'श्री संवेगरंगशाला अपक उत्पन्न हुए का नाश होता है ।।८४००।। तथा खारे, कड़वे, तीखे आदि रस वाले तथा कर्कश स्पर्श वाले अपने द्वीन्द्रिय आदि शरीर से अवश्य तेजस् काय, वायुकाय की विराधना करते है, वनस्पतिकाय में भी अंदर कीड़े रूप अथवा बाहर विविध रूप उत्पन्न होते द्वीन्द्रिय आदि जीवों द्वारा वनस्पतिकाय की भी विराधना होती है, इसलिए उनसे क्षमा याचना कर। तथा द्वीन्द्रिय आदि अवस्था को प्राप्तकर तूंने स्व-पर-उभय जाति के द्वीन्द्रिय आदि जीवों का यदि किसी का भी इस जन्म में या अन्य जन्मों में स्वयं अथवा दूसरे द्वारा विराधना की हो उनकी भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर, क्योंकि यह तेरा क्षमा याचना करने का समय है। पंचेन्द्रिय रूप में जलचर, स्थलचर और खेचर जाति प्राप्त कर तूंने यदि किसी स्व, पर-उभय जाति के जलचर, स्थलचर अथवा खेचर को ही परस्पर पीड़ा की हो और आहार के कारण से, भय से, आश्रय के लिए अथवा संतान की रक्षा आदि के लिए जिस मनुष्य की विराधना की हो उसकी भी तूं त्रिविध क्षमा याचना कर। इस तरह तिर्यंच योनि में तिर्यंच
और मनुष्यों की विराधना हुई हो उसकी क्षमा याचना कर अब मनुष्य जीवन में तूंने तिर्यंच, मनुष्य और देवों की जो विराधना की हो उसकी क्षमा याचना कर।
मनुष्य जीवन में सूक्ष्म या बादर यदि किसी जीवों की विराधना की हो उन सबकी भी क्षमा याचना कर, क्योंकि यह तेरा खमत खामणा का समय है, हंसिया, हल से जमीन जोतने में, कुए-बावड़ी, तालाब को खोदने में और घर-दुकान बनाने आदि में स्वयं अथवा दूसरों द्वारा, इस जन्म या अन्य जन्मों में पृथ्वीकाय जीवों की विराधना की हो, उसकी भी त्रिविध-त्रिविध गर्दा कर। यह तेरा खमत खामणा का समय है। हाथ, पैर, मुख को धोने में अथवा मस्तक बिना शेष अर्द्ध स्नान, संपूर्ण स्नान तथा शौच करने में, पीने में, जल क्रीड़ा आदि करने में इस जन्म में अथवा अन्य जन्म में स्वयं या दूसरों के द्वारा यदि पानी रूपी जीवों की विराधना की हो उसकी भी अवश्य त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर। क्योंकि अब तेरा क्षमा याचना का समय है। घी आदि का सिंचन करना, जलते हुए अग्नि को बुझाना, आहार पकाना, जलाना, डाम देना, दीपक प्रकट करना और अन्य भी अग्निकाय के विविध आरंभ-समारंभ में इस जन्म में या अन्य जन्मों में स्वयं अथवा अन्य द्वारा यदि अग्निकाय जीवों की विराधना की हो उनका भी त्रिविध-त्रिविध खमत खामणा कर। क्योंकि यह तेरा खमत खामणा का समय आया है। पंखा ढुलाना, गोफन फेंकना, निःश्वास-उच्छ्वास में, धौंकनी में अथवा फेंकने आदि में और शंख आदि बाजे बजाने में इस जन्म या अन्य जन्मों में, स्वयं अथवा पर द्वारा यदि वायु काय जीवों की विराधना की हो उनकी भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर। क्योंकि यह तेरा खमत खामणा का समय आया है। वनस्पति को छीलने से, काटने से, मरोड़ने से, तोड़ने से, उखाड़ने से अथवा भक्षण करने आदि से, क्षेत्र, बाग आदि में इस जन्म या अन्य जन्मों में स्वयं अथवा पर द्वारा यदि वनस्पतिकाय जीवों की विविध प्रकार से विराधना की हो उसकी भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर क्योंकि यह तेरा क्षमा याचना का समय है।
संख्या से असंख्य केंचुआ, जोंक, शंख, सीप, कीड़े आदि द्वीन्द्रिय जीवों का यदि इस जन्म या अन्य जन्मों में स्वयं दूसरों के द्वारा किसी प्रकार मारा हो उनकी भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर। क्योंकि यह तेरा क्षमा याचना का अवसर है। खटमल, कीड़ा, कुंथुआ, चींटी, नँ, घीमेल, दीमक आदि त्रीन्द्रिय जीवों का यदि इस जन्म या अन्य जन्मों में स्वयं अथवा दूसरों के द्वारा किसी तरह से मारा गया हो उसकी भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर। क्योंकि यह तेरा क्षमा याचना का समय है ।।८४२०।। मधु-मक्खी, टिड्डी, तितली, पतंगा, डांस, मच्छर, मक्खी, भौरे और बिच्छु आदि यदि चतुरिन्द्रिय जीवों का इस जन्म या अन्य जन्मों में स्वयं अथवा अन्य द्वारा विराधना की हो, उनकी भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर। क्योंकि यह तेरा क्षमा याचना का समय
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