Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal

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Page 342
________________ समाथि लाभ दार-पंच रजस्वार राजवा आठवाँ द्वार-श्राविका की कथा-हुंजिका यक्ष का प्रबंध 'श्रीसंवेगरंगशाला दूसरी पत्नी नहीं मिलेगी इसलिए इस पत्नी को किसी तरह खतम करना चाहिए' ऐसा सोचकर एक दिन काले सर्प को घड़े में बंदकर घर में रख दिया फिर भोजनकर उसने श्राविका से कहा कि-हे भद्रे! उस स्थान पर घड़े के अंदर पुष्प की माला है वह मुझे लाकर दे। पति की आज्ञा से उसने घर में प्रवेश किया और उसमें अंधकार होने से श्री पंच नमस्कार का स्मरण करते उसने पुष्पमाला के लिए उस घड़े में हाथ डाला, उसके पहले ही एक देवी ने सर्प का अपहरण किया और अति सुगंधमय विकसित श्वेत पुष्पों की श्रेष्ठ माला उस स्थान पर रख दी। श्राविका ने उसे लेकर पति को अर्पण की, इससे घबराकर वहाँ जाकर उसने घड़ा देखा, परंतु सर्प को नहीं देखा तब 'यह महा प्रभावशाली है' ऐसा मानकर पैरों में गिरकर अपनी सारी बात कही और क्षमा याचनाकर श्राविका को अपने घर के स्वामित्व पद पर स्थापन किया। इस तरह इस लोक में नमस्कार मंत्र अर्थ काम का साधक है, परलोक में भी यह नमस्कार मंत्र हुंडिका यक्ष के समान सुखदायक होता है ।।७७७६ ।। वह इस प्रकार : इंडिका यक्ष का प्रबंध मथुरा नगरी में लोगों के घरों में हमेशा चोरी करने वाला हुंडिका नाम का चोर था। उसे कोतवाल ने पकड़ा और गधे के ऊपर बैठाकर नगर में घुमाया, फिर उसे शूली पर चढ़ाया, और उससे उसका शरीर अति भेदन छेदन होने लगा। तृषा से पीड़ित शरीर वाला दुःख से अत्यंत पीड़ित होते उसने जिनदत्त नामक उत्तम श्रावक को उस प्रदेश में जाते देखकर कहा कि-भो! महायश! तं दःखियों के प्रति करुणा करने वाला उत्तम श्रावक है तो मैं अति प्यासा हूँ मुझे कहीं से भी जल्दी जल लाकर दे। श्रावक ने कहा कि जब तक मैं तेरे लिए जल को लाता हूँ तब तक इस नमस्कार मंत्र का बार-बार चिंतन कर। हे भद्र! यदि तूं इसको भूल जायगा तो मैं लाया हुआ पानी तुझे नहीं दूंगा। ऐसा कहने से जल की लोलुपता से वह दृढ़तापूर्वक नमस्कार मंत्र का स्मरण करने लगा। परंतु जिनदत्त श्रावक घर से पानी लेकर जितने में आता है उतने में नमस्कार मंत्र का उच्चारण करते वह मर गया। और नमस्कार मंत्र के प्रभाव से वह यक्ष रूप में उत्पन्न हुआ। ___ इधर जिनदत्त चोर के लिए भोजन पानी लाते देखकर राज पुरुषों ने उसे पकड़ लिया और राजा के सामने उपस्थित किया। राजा ने कहा कि चोर की सहायता देने वाला चोर के समान दोषित होता है इसलिए इसे भी शूली पर चढ़ाओ। राजा की आज्ञा से कोतवाल जिनदत्त को वध स्थान पर ले गये, उस समय हुंडिका यक्ष ने अवधि ज्ञान का उपयोग किया, इससे शूली पर अपने शरीर को भेदन किये और जिनदत्त श्रावक को वध के लिए लाये हुए देखकर बड़ा क्रोधित हुआ और उस नगर के ऊपर पर्वत को उठाकर बोला कि अरे! देव समान इस श्रावक से क्षमा याचना कर विदा करो, अन्यथा इस पर्वत से तुम सब को चकनाचूर कर दूंगा। इससे भयभीत हुए राजा ने जिनदत्त से क्षमा याचना कर छोड़ दिया। इस तरह हुंडिक चोर के समान नमस्कार मंत्र परलोक में सुख को देने वाला है। इसी तरह उभय लोक में इस नमस्कार को सुख का मूल जानकर आराधना के अभिलाषी हे क्षपक मुनिवर्य! तूं हमेशा इसका स्मरण कर। क्योंकि पंच परमेष्ठियों को भावपूर्वक नमस्कार करने से जीव का हजारों जन्म मरण से बचाव होता है और बोधि बीज लाभ की प्राप्ति का कारण होता है। संसार का क्षय करते धन्यात्मा के हृदय को बार-बार प्रसन्न करते यह पंच परमेष्ठि नमस्कार दुर्ध्यान को रोकने वाला होता है। इस तरह पाँचों को नमस्कार निश्चय से महान् प्रयोजनवाला कहा है। इसलिए जब मृत्यु पास में आती है तब क्षण-क्षण में उसे बहुत बार स्मरण करना चाहिए। इन पाँचों का नमस्कार सर्व पापों का नाश करने वाला है और सर्व मंगलों में प्रथम मंगल है। इस प्रकार यह पंच नमस्कार नाम का आठवाँ अंतर द्वार कहा है, अब सम्यग्ज्ञान का उपयोग नामक नौवाँ अंतर द्वार कहते हैं ।।७७९५ ।। 325 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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