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समाधि लाभ द्वार-पंच नमस्कार नामक आठवाँ द्वार
श्रीसंवेगरंगशाला स्वरपूर्वक और काया से पद्मासन में बैठकर तथा हाथ की योग मुद्रावाले आत्मा को स्वयं संपूर्ण नमस्कार मंत्र का सम्यग् जाप करना चाहिए। यदि यह विधि उत्सर्ग विधि है फिर भी बल कम होने से ऐसा करने में समर्थ न हो तो भी उनके नाम अनुसार 'अ-सि-आ-उ-सा' इन पाँच अक्षरों का सम्यग् रूप से मौनपूर्वक भी जाप करना चाहिए। यदि ऐसा भी करने में किसी प्रकार अशक्य हो तो 'ओम्' इतना ही ध्यान करना चाहिए। इस 'ओम्' द्वारा श्री अरिहंत, अशरीरी सिद्ध परमात्मा, आचार्य, उपाध्याय और सर्व मुनिवरों का समावेश हो जाता है। शब्द शास्त्र के जानकार वैयाकरणियों ने उनके नाम में प्रथम प्रथम अक्षरों की संधि करने से यह 'ओम्' या ॐकार को बतलाया है।
इसलिए ऐसे ध्यान से अवश्य श्री पंच परमेष्ठियों का ध्यान होता है अथवा जो निश्चय इस ध्यान को भी करने में समर्थ न हो तो उसके पास बैठे हुए कल्याण मित्र साधर्मि बंधुओं के समूह से बुलवाता श्री पंच नमस्कार मंत्र को सुने और हृदय में इस प्रकार से भावों का चिंतन करे कि-यह नमस्कार मंत्र धन की गठरी है, निश्चय किसी दुर्लभ व्यक्ति को प्राप्त होता है, यह इष्ट संयोग हुआ है, और यही परम तत्त्व है। अहो! अवश्य अब मैं इस नमस्कार मंत्र की प्राप्ति से संसार समुद्र के किनारे पहुँचा, नहीं तो कहाँ मैं होता? अथवा कैसे इस तरह नमस्कार मंत्र का सम्यग् योग हुआ है? मैं धन्य हूँ कि-अनादि, अनंत संसार समुद्र में अचिंत्य चिंतामणि यह श्री पंच परमेष्ठी नमस्कार मंत्र को प्राप्त किया है। क्या आज मेरे सर्व अंग अमृतरूप बन गये हैं अथवा क्या किसी ने अकाल में भी मुझे संपूर्ण सुखमय बना दिया है। इस तरह परम समता रस की प्राप्ति पूर्वक सुना हुआ नमस्कार मंत्र अमृतधारा के योग से जैसे जहर का नाश होता है, वैसे क्लिष्ट कर्मों का नाश होता है। जिसने मरण काल में इस नमस्कार मंत्र का भावपूर्वक स्मरण किया या सुना है उसने सुख को आमंत्रण दिया है और दुःख को जलांजलि दी है। यह नवकार मंत्र पिता, माता, निष्कारण बंधु, मित्र और परमोपकारी है। यह नमस्कार सर्व श्रेयों का परम श्रेय, सर्व मंगलों का परम मंगल, सर्व पुण्यों का परम पुण्य और सर्व फलों का परम फल है तथा यह नमस्कार मंत्र इस लोकरूपी घर में से परलोक के मार्ग में चलते हुए जीव रूप मुसाफिरों का परम हितकर पाथेय तुल्य है। जैसे-जैसे उसके श्रवण का रस मन में बढ़ता है वैसे-वैसे जल भरे कच्चे मिट्टी के घड़े के समान क्रमशः कर्म की गांठ क्षीण होती है। ज्ञानरूपी अश्व से युक्त श्री पंच नमस्कार रूप सारथि से प्रेरित तप-नियम और संयम के रथ में बैठनेवाले मनुष्य को निर्वृत्ति मोक्ष नगर में पहुँचा देता है।
__ जिसके प्रभाव से अग्नि भी शीतल हो जाती है और गंगा नदी उलटे मार्ग में बहने लगती है तो क्या यह नमस्कार मंत्र परमपद मोक्ष नगर में नहीं पहुँचायगा? अवश्यमेव पहुँचायगा। इसलिए आराधनापूर्वक एकाग्र चित्त वाला और विशुद्ध लेश्या वाला तूं ,संसार का उच्छेद करने वाले इस नमस्कार मंत्र के जाप को मत छोड़ना। मरणकाल में इस नमस्कार को अवश्य साधना चाहिए, क्योंकि श्री जिनेश्वर देव ने इसे संसार का उच्छेद करने
है। निर्विवाद कर्म का क्षय तथा अवश्य मंगल का आगमन ये सभी श्री पंच नमस्कार करने का सुंदर तात्कालिक फल है। कालान्तर भाविफल तो इस जन्म और अन्य जन्म का, इस तरह दो प्रकार का है, उसमें उभय जन्म में सुखकारी ऐसी सम्यग् अर्थ-काम की प्राप्ति वह इस जन्म का फल है। उसमें भी उसकी (अर्थकाम की) क्लेश बिना प्राप्ति होती है और आरोग्यता पूर्वक उन दोनों को निर्विघ्न भोगने से इस जन्म में सुखकारक है और शास्त्रोक्त विधि से उत्तम स्थान में व्यय करने से परभव में सुखकारक होता है। श्री पंच नमस्कार का अन्य जन्म संबंधी भी फल कहा है। यदि इसी जन्म में ही किसी कारण से सिद्धि में गमन न हो, फिर एक बार भी नमस्कार मंत्र को प्राप्त किया हुआ और निश्चय उसकी विराधना नहीं करने वाला, अतुल पुण्य
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