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समाधि लाभ द्वार-अनुशास्ति द्वार-जातिमद द्वार-ब्राह्मण पुत्र का दृष्टांत श्री संवेगरंगशाला इसलिए उन जातियों की स्थिरता शाश्वत नहीं होती है। इस संसार में राजा अथवा ब्राह्मण होकर भी यदि जन्मान्तर में वह कर्मवश चण्डाल भी होता है तो उसके मद से क्या लाभ? और सर्वश्रेष्ठ जातिवाले को भी कल्याण का कारण तो गुण ही है, क्योंकि जातिहीन भी गुणवान लोक में पूजा जाता है। 'वेदों का पाठक और जनेऊ का धारक हूँ, इससे लोक में गौरव को प्राप्त करते मैं ब्राह्मण सर्व में उत्तम हूँ इस तरह जातिमद से उन्मत बनें ब्राह्मण को भी यदि नीच लोगों के घर में नौकर होना पड़ता है, तो उसे जातिमद नहीं परंतु मरण का शरण करना पड़ता है। जातिमद करने से जीव नीच गोत्र का ही बंध करता है। इस विषय पर श्रावस्ती वासी ब्राह्मण पुत्र का दृष्टांत है ।।६५५४।। वह इस प्रकार :--
ब्राह्मण पुत्र का दृष्टांत देवमंदिर, चार कोने वाली बावड़ी, लम्बी बावड़ी, गोलाकार बावड़ी तथा बाग की श्रेणियों से रमणीय श्रावस्तीपुरी में अनेक राजाओं को चरण कमल में नमानेवाला और जगत प्रसिद्ध नरेन्द्र सिंह नाम का राजा था। उसे वेद के अर्थ के विचार करने में कुशल अमरदत्त नामक पुरोहित था। उस पुरोहित का सुलस नामक पुत्र यौवनवय से ही श्रुतज्ञान से, वैभव से और राजा के सत्कार से अत्यंत गर्व को धारण करता था। समान वय वाले मित्रों से घिरा हुआ वह निरंकुश हाथी के समान लोकापवाद का भी अपमान करके नगर के मुख्य बड़े आदि राजमार्ग में स्वच्छंदतापूर्वक घूमता था। एक समय सुखपूर्वक बैठा हुआ उसे माली ने ,-, गुंजार करते भौंरों से भरी हुइ आम की मंजरी भेंट दी। कामदेव ने स्वहस्त से लिखा हुआ आमंत्रण पत्र हो इस तरह मंजरी लेकर वसंत मास आया हो ऐसा मानकर प्रसन्न हुआ, वह अपने हाथ से माली को दान देकर चतुर परिवार से घिरा हुआ शीघ्र नंदन नामक उद्यान में गया। फिर विनय से खडे हए नंदन उद्यान के रक्षक ने उसे कहा-हे कुमार! आप स्वयं एक क्षण इस प्रदेश में दृष्टिपात करें। फैलती श्रेष्ठ सुगंध से आये हुए भ्रमरों के समूह से शोभती डालियों के अंतिम भाग वाले बकुल वृक्ष हाथ में पकड़े हुए रुद्राक्ष माला वाले जोगी के समान शोभते थे। ऊँचे बढ़े हुए पत्तों से आकाश तल के विस्तार को स्पर्श करते कमेलि वृक्ष भी प्रज्वलित अग्नि के समूह के समान विरही जनों को संताप करता है, और कमलरूपी मुखवाली, केसुड़ के पुष्परूपी रेशमी वस्त्र वाली, मालती की कलियाँ रूपी दांत वाली, पाटल वृक्ष रूपी नेत्रों वाली, कलियाँ वाला कुरूबक जाति वृक्ष का गुच्छ रूप महान् स्तनवाली और स्फुरायमान अति कोमल तिलक वृक्षरूप तिलक वाली यह वन लक्ष्मी कोयल के मधुर आवाज से कामदेव रूपी राजा के तीन जगत के विजय यश के गीत गाती हो। इस तरह वह गा रही थी। इस तरह नंदन वनपालक ने प्रकट वृक्ष की शोभा बताने से दो गुणा उत्साह वाला वह उद्यान के अंदर परिभ्रमण करने लगा। वहाँ घूमते हुए उसने किसी तरह वन की गाढ़ झाड़ियों के बीच एकांत में रहे स्वाध्याय करते एक महामुनिवर को देखा। फिर पापिष्ठ मन से अत्यंत जातिमद को धारण करते हँसी करने की इच्छा से मुनि श्री को (माया से) भक्तिपूर्वक वंदन किया
और कहा कि-हे भगवंत! संसार के भय से डरा हुआ मुझे आप अपना धर्म कहो, कि जिससे आपके चरण कमल में दीक्षा स्वीकार करूँ।
सरल स्वभाव से मुनि ने प्राणिवध, मृषावाद, परद्रव्य, मैथुन और परिग्रह के त्याग युक्त पिंड विशुद्धि आदि श्रेष्ठ गुणों के समूह से सुंदर जगत गुरु श्री जिनेश्वर भगवान ने उसका मूल जीव दया कहा है, इससे शिवगति की प्राप्ति होती है, अतः शिवगति प्राप्त न हो वहाँ तक धर्म की अच्छी तरह आराधना करने को कहा है। यह सुनकर वह हँसीपूर्वक ऐसा बोलने लगा कि___हे साधु! किस ठग ने तुझे इस तरह ठग लिया है, कि जिससे प्रत्यक्ष दिखते हुए दिव्य विषय सुख को
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