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श्री संवेगरंगशाला
परिकम द्वार-विनय द्वार-विलय पर श्रेणिक राजा की कथा समुद्र में डूबे हुए राजा के दिन व्यतीत होने लगें।
किसी दिन उस नगर में रहते एक चंडाल की पत्नी ने गर्भ धारण किया, गर्भ के प्रभाव से उसको एक दिन (बिना ऋतु) आम फल खाने का दोहद उत्पन्न हुआ, परन्तु वह दोहद पूर्ण नहीं होने से उसके सर्व अंग प्रतिदिन क्षीण होते देखकर चंडाल ने पूछा-हे प्रिया! तुम क्षीण क्यों हो रही हो? तब उसने परिपक्व आम फल का दोहद बतलाया। चंडाल ने कहा-आम फल का यद्यपि इस समय काल नहीं है फिर भी हे सुतनु! कहीं से भी वह मैं लाकर दूंगा, तूं धैर्य धारण कर। उसके बाद उस चंडाल ने राजा का एक बाग सर्व ऋतु के फलवाला है ऐसा सुना और बाहर खड़े होकर उस उद्यान को देखते उसमें एक पके हुए फल वाला आमवृक्ष देखा, फिर रात्री होने के बाद उसने अवनामिनी (नमानेवाली) विद्या द्वारा शाखा को नमाकर आम फल ले लिये और पुनः उत्तम प्रत्यवनामिनी विद्या से उस शाखा को अपने स्थान पर पहुँचाकर प्रसन्न होता हुआ घर जाकर उसने वे फल पत्नी को दिये और पूर्ण दोहद वाली वह गर्भ को धारण करने लगी।
उसके बाद प्रातः अन्य वृक्षों का अवलोकन करते राजा ने आमवृक्ष को फल के बिना देखकर बागवान से पूछा-इस पेड़ से आम फल किसने लिये हैं? उसने कहा-हे देव! निश्चय यहाँ पर कोई मनुष्य नहीं आया, तथा जाते-आते किसी के पैर भी पृथ्वी तल में नहीं दिखते हैं इससे हे देव! यह आश्चर्य है? जिसको ऐसा अमानुषी सामर्थ है उसे कुछ भी अकरणीय नहीं है, वह सब कुछ कर सकता है। ऐसा विचारकर श्रेणिक ने अभय को कहा-हे पुत्र! इस प्रकार के कार्य करने में समर्थ चोर को जल्दी पकड़ो। क्योंकि आज जैसे फलों की चोरी की है वैसे किसी दिन मेरी रानी का भी हरण करेगा? मस्तक द्वारा भूमितल स्पर्श करते अभय कुमार 'महा प्रसाद' ऐसा कहकर आज्ञा को मस्तक पर चढ़ाकर तीन रास्ते में, चार रास्ते में, चौक आदि स्थान पर सावधानी पूर्वक खोज करने लगा, इस तरह कई दिन बीत गये, परन्तु चोर का कोई पता नहीं लगा तब अभयकुमार अत्यन्त चिंतातुर हुआ इतने में किसी नट ने नगर के बाहर नाटक आरम्भ किया वहाँ बहुत मानव समूह एकत्रित हुआ, अभयकुमार ने भी वहाँ जाकर स्वभाव जानने के लिए कहा-हे मनुष्यों! जब तक नाट्यकार नहीं आता है तब तक एक बात सुनाता हूँ। उन्होंने भी कहा-हे नाथ! सुनाइए, तब अभयकुमार कहने लगा
बसन्तपुर नगर में जीर्ण नाम का सेठ था। उसकी एक पुत्री थी। दरिद्रता के कारण पिता ने उसकी शादी नहीं की, इससे वह बड़ी उम्र में वर के प्रयोजन से कामदेव की पूजा करने लगी। एक दिन पूजा के लिए उद्यान में से चोरी से फूलों को चुनती उसे देखकर माली ने कुछ विकारपूर्वक उसे बुलाया, उसने उससे कहा-क्या तुझे मेरे समान बहन बेटी नहीं है कि जिससे कुमारी अवस्था में भी मुझे ऐसा कह रहा है? उसने कहा कि-यदि तूं विवाह बाद पति के सेवन से पहले मेरे पास आयगी तो तुझे छोडूंगा अन्यथा नहीं जाने दूंगा। 'हाँ मैं ऐसा करूँगी' ऐसा स्वीकार करके वह अपने घर गयी, फिर किसी दिन प्रसन्न होकर कामदेव ने उसे सुंदर वर रूप में मन्त्री पुत्र दिया, और अति श्रेष्ठ लग्न के समय हस्तग्रह योग में उसने उसके साथ विवाह किया। उस समय सूर्य का बिम्ब
अस्ताचल पर पहुँच गया ।।१६५०।। फिर काजल और भ्रमर के समान कान्तिवाली अति अंधकार की श्रेणी सर्व दिशाओं में फैल गयी, उसके बाद रात्री विकासी कुमुद के खण्ड की जड़ता को दूर करने वाला चन्द्र मण्डल का उदय हुआ, विविध मणिमय भूषणों से शोभित मनोहर सर्व अंगोंवाली वह वास भवन में पहुँची और पतिदेव को निवेदन किया कि-'विवाह के बाद पहले मेरे पास आना' ऐसा माली का वचन उस समय मैंने स्वीकार किया था, इसलिए-हे प्रियतम! मैं वहाँ जाती हूँ, आप आज्ञा दीजिए। 'यह सत्य प्रतिज्ञा वाली है' ऐसा सोचकर पति ने आज्ञा दे दी, फिर श्रेष्ठ आभूषणों से युक्त उसे नगर के बाहर जाते देखकर एक चोर ने 'आज तो महानिधान
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