Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

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Page 13
________________ [ ११ ] इस मूलपाठमें भश्मग्रह लगनेसे भगवान् महावीर स्वामीका तीर्थ विच्छेद होना नहीं कहा किन्तु श्रमण निग्रन्थोंकी उदय उदय पूजा वर्जित की है इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि भश्ममहके समयमें भी भगवान महावीर स्वामी का चलाया हुना तीर्थ चलता ही रहा दूटा नहीं क्योंकि जब तीर्थ ही नहीं रहेगा तब फिर उदय पूजा किस की बन्द होगी ? अतः कल्पसूत्रका नाम लेकर भगवान महावीर स्वामीके तीर्मका बीच में विच्छेद बतलाना मिथ्या है। इसी तरह भ्रमविध्वंसनकी भूमिकामें जे यह लिखा है कि “पश्चात् १८५३ में धूमकेतु ग्रहके उतर जाने के कारण श्री स्वामी हेमराजजीकी दोक्षा होनेके मनन्तर क्रमानुक्रम जिन मार्गकी उन्नति होने लगी” यह भी मिथ्या है। क्योंकि धूमकेतु ग्रह कंगचूलियाके पाठानुसार विक्रम संवत् १५६२ में ही उतर गया था। सम्वत १८५३ में उस के उतरने की बात मिथ्या है। देखिये दंग चूलिया का पाठ यह है___ततो सोलस्सएहिं नव नवति संजुएहिं वरीसेहिं ते दुटु वाणियागा अवमन्च संति सुर्य मेयं सम्मिगए अग्गिदत्त ? संघे सुय जम्मरासी नक्खचे अहतीसमो दो । लगिस्सइ धूमके उगहो। तस्सठिई तिन्नि सया तेतीसा एगराशि परिमाणं तम्स्यिमिण पइट्टो संघमुयस्स उठ्यो अत्यि" । अर्थात् इसके अनन्तर १६९९ वर्षमें संघके जन्म नक्षत्र पर अट्ठाइसवां भूमकेतु नामक महामह लगेगा वह तीनसौ तैतीस वर्ष तक वहां स्थित रहेगा इसकी स्थितिकाल में सा और शास्त्र की पूजा प्रतिष्ठा कम होमी। यह इस पाठका भावार्थ है। यहां वीर निर्वाणसे १६९९ पर तीनसौ तैतीस वर्षके लिये धुमकेतु का लाना बतलाया है और विक्रम संवत् १२२९ में वीर निर्वाण काल १६९९ वर्षका होता है। इसका हिसाब इस प्रकार लगाइये वीर निर्वाणके अनन्तर ४७० वर्ष तक नन्दी वाहनका शक चलता रहा उसके बाद विक्रम सम्बत् आरम्भ हुआ। इसलिये विक्रम संवत् १२२९ में ४७० वर्ष मिला देनेसे १६९९ वर्ष होते हैं। यही वंगचूलियाके हिसाबसे धूमकेतुग्रहके प्रवेशका समय है । वह धूमकेतु ३३३ वर्ष तक रहा इसलिये विक्रम संवत् १२२९ में ३३३ जोड़ देनेसे १५६२ वर्ष होता है। इसी विक्रम संवत् १५६२ में धूमकेतु ग्रह उतरा। अतः भ्रमविध्वंसनकी भूमिकामें विक्रम संवत् १८५३ में धूमकेतुके उतरनेका समय बतहाना मिथ्या समझना चाहिये। तथा इस ऊपर लिखे हुए वंगचूलियाके पाठमें धूमकेतु ग्रहके समयमें चतुर्विध साकी उदय उदय पूजाका ही निषेध किया है सङ्घका टूट जाना नहीं बतलाया है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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