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इस पाठमें चतुर्विध संघका लगातार २१००० वर्ष तक चलता रहना साक्षात् तीर्थस्ने बतलाया है मतः भगवानके तीर्थको बीचमें टुटनेकी पात तेरह पन्थियों की नितांत शास्त्रविरुद्ध समझनी चाहिये। . अब यह पाठ तेरह पन्थियोंके सामने रक्खा जाता है तब वे कहते हैं कि इस पाठमें तीर्थ शब्दका चतुर्विध सङ्घ अर्थ नहीं किन्तु शास्त्र अर्थ है। और इस पाटमें भगवान्ने अपने शास्त्रको २१००० वर्ष तक चलना बतलाया है पर यह भी उनकी दलील शास्त्रविरुद्ध ही ठहरती है। इसी जगह भगवान्ने मूलपाठमें तीर्थ शब्दका अर्थ ब.. विध सङ्क बतलाया है वह पाठ
"तित्यं भन्ते ? तित्थं सित्थंकरे तित्थं गोयमा ? भरहा वाव णियमा तित्यं करे तित्थं पुण चाउवण्णाइण्णे समणसंघे तंजहा समणा समणीयो साक्या सावियामो'
(सत्रम् ६८१) अर्थ-हे भगवन् तीर्थको तीर्थ कहते हैं अथवा तीर्थङ्करको तीर्थ कहते हैं ?
(उत्तर) हे गोतम ! अरिहंत तो नियमसे तीर्थकर होते हैं किन्तु चतुर्विध श्रमण सबको तीर्थ कहते हैं। वह श्रमण संघ यह है-साधु साध्वी, श्रावक और प्राषिकायें।
- यहां भगवान्ने तीर्थ शब्दका साफ साफ साधु साध्वी श्रावक और श्राविका मर्य किया है और इनके समूह को ही इसके पूर्व सत्रमें २१००० वर्ष तक चटना बतलाया है । अत: तीर्थ शब्दका अर्थ यहां शास्त्र मानना और चतुर्विध सङ्घको बीचमें टुटनेकी प्ररूपणा करना एकांत मिथ्या है।
इसी तरह बीचमें तीर्थ टुट जानेके सम्बन्धमें जो तेरह पन्थी यह युक्ति देते हैं कि भगवान महावीर स्वामीके जन्म नक्षत्र पर भश्मप्रहका लगना कल्पसूत्रमें कहा है उस भश्मप्रहके कारण भगवानका चलाया हुआ तीर्थ टूट गया था यह भी मिथ्या है क्योंकि कल्पसूत्रके उसी पाठसे यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि भश्म गृहके लगने के समय में भी भगवान का तीर्थ चलता ही रहा था टूटा नहीं था । वह पाठ
___ "अप्पभिई चणं से खुहाए भासरासी महागहे दो वास सहस्सठिई समणस्स भगवो महावीरस्स जन्म नक्खत्त संकते तप्पमिई घणं समणाणं णिग्गंथाणं निग्गं योग्य मोउदिए उदिए पूजा सक्कारे पवत्तइ" (कल्पसूत्र)
अर्थात् श्रमण भगवान महावीर स्वामीके जन्म नक्षत्र पर दो हजार वर्ष की स्थितिवाला भश्मराशि नामक महामह जबसे लगेगा सबसे अमण नियन्य और निप्रन्थियोंका पूजा सत्कार उदय उदय न होगा।
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