Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

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Page 11
________________ [ ९ ] इस ग्रन्थका भीनासरमें ही बनाना आरम्भ कर दिया। और चातुर्मास्य भर भीनासरमें यह कार्य हुआ। पश्चत सङ्घकी प्रार्थनासे पूज्यश्रीका थली प्रान्तमें विहार हुआ वहां पर घोर अज्ञानान्धकारमें पड़ी हुई जनताको देख कर इस प्रन्थको बनानेमें पूज्यश्रीकी और भी प्रवल इच्छा हुई । और सरदार शहरके चातुर्मास्यमें पुन: यह कार्य प्रचलित किया पर सरदार सहरके चातुर्मास्य समाप्त होने पर पूज्यश्री का प्रामानुपाम विहार होनेके कारण यह कार्य चूरूके चातुर्मास्य तक रूका रहा। पश्चात् चूरूके चातुर्मास्यमें होकर वीकानेरके चातुर्मास्यमें सम्बत. १९८७ के अन्दर यह कार्य समाप्त हुआ। वन्धुओ? . भगवान महावीर स्वामीसे लेकर आज तक जितने आचार्य हुए हैं किसीने भी जीवरक्षाको पाप नहीं बतलाया है किन्तु सभीने इसे धर्म कहा है। पर आज तेरह पन्थ सम्प्रदाय इसे पाप कहता है यह इसकी अपनी कपोल कल्पना है शास्त्रकी यह राय नहीं है। तेरह पन्थियोंसे जब पूछा जाता है कि तुम्हारे समान प्ररूपणा किसी पूर्वाचायने पहले कभी की हो तो बतलाओ ?। इसका यथार्थ उत्तर तेरह पन्थियोंसे कुछ भी नहीं दिया जाता किन्तु भोली भाली श्रावक मण्डलीको वहकानेके लिये वे कहते हैं कि हमारी श्रद्धा ही पुरानी है और यही सच्चा जिनभाषित धर्म है परन्तु काल पाकर यह नष्ट हो गया था। पश्चात हमारे पूर्वाचार्य भीषणजीने इसका पुनरुद्धार किया है । यह कह कर अन्धविश्वासी जनताको वे भूलाये देते हैं। परन्तु बुद्धिमानों को निर्मूल तथा शास्त्रविरुद्ध इनकी बातें नहीं माननी चाहिये। . साक्षात् भगवान महावीर स्वामीने भगवती सूत्र शतक २० उद्देशा ६ के मूलपाठ में चतुर्विध सङ्घको लगातार २१००० वर्ष तक चलता रहना बतलाया है इसलिये तेरह पन्थियों का ती विच्छेद बतलाना एक.न्त मिथ्या है। भगवती सूत्र का वह मूलपाठ यह है जम्बू दीवेणं भन्ते ? दीवे भारए वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवाणुप्पियाणं केव त्तियं कालं तित्थे अणुसिज्जिस्सइ १ गोयमा ? अम्बूदीवे दीवे मारए वासे इमीसे ओस्सप्पिणीए ममं एगविसं वास सहस्साई तित्थे अणुसिज्जस्सई" (सूत्र ६७९) . . __ अर्थ-हे भगवन् ? जम्बू द्वीपके भारतवर्षमें इस अवसर्पिणीकालमें आपका तीर्थ कितने काल तक लगातार चलता रहेगा ? . ... उत्तर-हे गोतम ? जम्बूद्वीपके भारतवर्षमें इस अवसर्पिणी कालमें मेरा तीर्थ २१००० वर्ष तक लगातार चलता रहेगा। ... ... . . . . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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