Book Title: Saddharm Mandanam Author(s): Jawaharlal Maharaj Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad View full book textPage 9
________________ [ ७ ] नहीं होती । इत्यादि जो दस आश्चर्य हुए हैं वे कभी नहीं होते पर किसी भावी योगसे हुए हैं। इस लिये गोशालक और भगवान् महावीर का पूर्वभवका वैर था उस वैश्का फल भोगे विना वह किस प्रकार मोक्ष पाते ? । तथा वह छः महीने तक रक्तव्याधि भोगे विना किस प्रकार मुक्त होते ? । १३ वे सयोगी केवली गुणस्थानमें मोक्ष जानेके समय साव कर्म सम्पूर्ण होते हैं और वेदनीय कर्म बहुत होते हैं । केवल समुद्घातको प्रकट करके वेदनीय कर्मों का क्षपण और आठ कर्मों को पूर्ण करके केवली मोक्ष जाते हैं । इसलिये गोशालक कृत वेदना और उसके वैरको सम्पूर्ण किये विना भगवान् महावीर किस प्रकार मोक्ष जा सकते थे । यह भात्री भाव था । इसी कारण भगवान् वीरने गोशालकको लेश्या सिखाई थी अतः वीर भूले यह शब्द तुम मत कहो। इस प्रकार पूज्य श्री रघुनाथजी महाराजने भूषणजीको बहुत कुछ समझाया पर भीषणजीने अपना हठ नहीं छोड़ा । 1 फिर पूज्य श्री रघुनाथजीने कहा कि उत्सूत्र प्ररूपणा करके तुम अनुकम्पा मत उठाओ । उपासक दशांग सूत्रमें श्रेणिक राजाने अनुकम्पा कर कसाई बाड़ा उठा दिया था और जीव नहीं मारनेका ढिंढोरा पिटवाया था । तथा राजप्रश्नीय सूत्रमें प्रदेशी रामाने बारह व्रत धारण करके अपनी संपत्तिके चतुर्थभागसे अनुकम्पार्थ दानशाला बनवाई थी। फिर उत्तराध्ययन सूत्रमें श्री नेमिनाथजीने विवाहार्थ जाते हुए पशुमसे भरा - हुआ बाड़ा देखा और अनुकम्पा कर उन्हें छुड़ा दिया । तथा ठाणाङ्ग सूत्रमें दश प्रकार के दान कहे है उनमें अनुकम्पा दानका वर्णन है । इस प्रकार शास्त्रमें ६५ जगह अनुकम्पा सम्बन्धी पाठ आये हैं उन पाठोंको बता कर भी भीषणभीको समझाया पर भीषण जीने अपना हठ नहीं छोड़ा | यह भीषणजी तेरह पन्थ सम्प्रदायके प्रवर्तक थे । इनका सम्प्रदाय शास्त्र विरुद्ध होने के कारण यद्यपि क्षण भर भी ठहरने योग्य न था तथापि जनताके बन्दर मूर्खताका आधिक्य होनेसे और हुण्डा व्यवसर्पिणी कालके प्रभाव से इनका सम्प्रदाय चल निकला । और इस सम्प्रदाय के चलने से जनताके अन्दर जीव रक्षा करनेमें एकान्त पापका विश्वास उत्पन्न हुआ । इस भीषण जीके चौथे पाट पर जीतमलजी नामक एक व्यक्ति आचार्य हुए । इन्होंने दान दयाका सर्वनाश करनेके लिये भ्रमविध्वंसन नामक एक ग्रंथ रचा और उसमें शास्त्र के अर्थ का अनर्थ करके मूर्ख जनता में भीषणजीके सिद्धान्तोंको पुष्ट करने का पूर्ण प्रयास किया। जहां जहां भीषण जी की श्रद्धा शास्त्रसे विरुद्ध होती थी वहां वहां इन्होंने शास्त्रका अर्थ बदल दिया है । और जहां अर्थ नहीं बदल सका वहांका पाठ ही नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 562