Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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गया है कि वे ग्राम और नगर धिक्कार के योग्य हैं, जहाँ महिला शासन करती हो। इसी प्रकार वे पुरुष भी धिक्कार के योग्य हैं, जो नारी के वश में रहते हैं। नारी सिंह युक्त स्वर्णगुफा, विषयुक्त पुष्प माला और भंवरों से अर्थात् चक्रगति से युक्त नदी के समान है। वह मदोन्मत्त बना देने वाली मदिरा है। जिस ग्राम और नगर में स्त्रियाँ बलवान हैं, बेलगाम घोड़े की तरह स्वच्छन्द हैं, वे ग्राम और नगर अपर्व के दिनों में मुण्डन के समान हैं, अर्थात् निन्दनीय हैं। इससे यह स्पष्ट है कि गर्दभिल्ल ऋषि पुरुष की ज्येष्ठता और श्रेष्ठता के प्रतिपादक थे। यद्यपि प्रस्तुत अध्याय की एक गाथा ऐसी अवश्य है, जिसमें स्त्री की प्रशंसा मिलती है। इसमें कहा गया है कि स्त्री सूदिव्य कुल की प्रशस्ति, मधुर जल, विकसित रम्य कमलिनी और सर्पवेष्टित मालती लता के समान है। यद्यपि इस प्रशंसा के अन्त में भी सर्पवेष्टित मालती लता कह कर उसे वर्जनीय ही बताया गया है।
इस अध्याय के अन्त में बन्धन के कारणों के सम्यक परिज्ञान की शिक्षा देते हुए अन्त में ध्यान मार्ग का प्रतिपादन किया गया है। वे अन्त में कहते हैं कि जिस प्रकार शरीर में मस्तक और वृक्ष के लिये जड़ आधारभूत है उसी प्रकार समस्त मुनियों के लिये ध्यान आधारभूत है। उत्तराध्ययन में गर्दभिल्ल के सम्बन्ध में जो विशेषण प्रयुक्त हैं, वे भी उनके ध्यान मार्ग की परम्परा से सम्बन्धित होने के तथ्य की पुष्टि करते हैं। उनमें उन्हें तपोधन, स्वाध्याय और ध्यान से संयुक्त धर्मध्यान का ध्याता कहा गया है (18/4)।
तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर बौद्ध परम्परा में हमें गर्दभिल्ल का कहीं उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु वैदिक परम्परा में बृहदारण्यक उपनिषद् में जनक के समकालीन गर्दभी विपीत या गर्दभी विभीत नामक एक आचार्य का उल्लेख मिलता है। 183 यद्यपि साक्ष्यों के अभाव में आज यह कह पाना कठिन है कि बृहदारण्यक उपनिषद् के गर्दभी विभीत और ऋषिभाषित के दगभालगद्दभाल एक ही व्यक्ति हैं।
महाभारत के अनुशासन पर्व184 में विश्वामित्र के एक ब्रह्मवादी पुत्र के रूप में गर्दभी का उल्लेख मिलता है। उसमें उन्हें ब्रह्मवादी और महान् ऋषि कहा गया है। इससे यह सिद्ध होता है कि ये उस युग के एक प्रभावशाली ऋषि थे। यद्यपि उसमें इन्हें विश्वामित्र का पुत्र कहा गया है, यह मुझे समुचित नहीं लगता है; क्योंकि न केवल इन्हें अपितु गार्गी, याज्ञवल्क्य, नारद, कपिल आदि को भी विश्वामित्र के पुत्र के रूप में उल्लिखित किया गया है, जो सत्य प्रतीत नहीं होता। एक सम्भावना अवश्य प्रकट की जा सकती है कि ये विश्वामित्र की
ऋषिभाषित : एक अध्ययन 75