Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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उपर्युक्त विवरणों से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि ये सारिपुत्र बौद्ध परम्परा के सारिपुत्र ही हैं। इसका आधार यह है कि इस अध्याय की प्रारम्भिक गाथाएँ बौद्ध मन्तव्य को स्पष्ट करने के लिए शीलाङ्क की सूत्रकृतांग टीका में तथा हरिभद्र के षड्दर्शन समुच्चय की टीका में कुछ शाब्दिक परिवर्तन के साथ उपलब्ध होती हैं। परम्परागत मान्यता के अनुसार इन्हें महावीर के काल का अर्हत् ऋषि या प्रत्येकबुद्ध माना जाता है । बुद्ध के समकालीन होने से ये स्वतः महावीर के समकालीन भी सिद्ध हो जाते हैं। डॉ. कुसुमप्रज्ञाजी और उनके अनुसार महाप्रज्ञजी की मान्यता वह रही है कि सारिपुत्र स्वयं भगवान बुद्ध हैं।
39. संजय
ऋषिभाषित का उनतालीसवाँ अध्याय संजय नामक अर्हत् ऋषि से सम्बन्धित है। संजय का उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त उत्तराध्ययन में भी उपलब्ध है। 285 यद्यपि जैन परम्परा में संजय नामक अनेक व्यक्तियों के उल्लेख मिलते हैं, किन्तु उनकी ऋषिभाषित के संजय के साथ कोई संगति नहीं बैठती है । यद्यपि इस सम्बन्ध में संशय का कोई अवकाश नहीं है कि उत्तराध्ययन के 18वें अध्याय में उल्लेखित संजय और ऋषिभाषित के संजय एक ही व्यक्ति हैं। उत्तराध्ययन के अनुसार ये कम्पिलपुर के राजा थे। किसी समय शिकार के लिए केशर उद्यान में गये। वहाँ उन्होंने हरिण का शिकार किया । मृत हरिण को वहाँ ध्यानस्थ गर्दभिल्ल नामक आचार्य के चरणों के निकट देखकर ये मुनि के शाप के भय से भयभीत हुए। मुनि से क्षमायाचना की। आचार्य के अभय और अहिंसा के उपदेश से प्रभावित हो, राज्य का परित्याग कर उनके चरणों में दीक्षित हो गये। मृग-वध की यह बात वे ऋषिभाषित के इस अध्याय की पाँचवीं गाथा में स्वीकार करते हैं और कहते हैं— मुझे सुस्वादु भोजन एवं भव्य (भद्र) आवासों से कोई प्रयोजन नहीं, जिनके कारण मृग का वध करने के लिए संजय जंगल में जाता है । 286 ऋषिभाषित और उत्तराध्ययन में वर्णित संजय की एकरूपता के लिए इससे अधिक किसी अन्य प्रमाणं की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती है। उत्तराध्ययन के उस अध्याय को 'संयतीय' कहा जाता है यह ठीक नहीं है, उसे 'संजयीय' होना चाहिए । उत्तराध्ययन के अनुसार ये गर्दभिल्ल के शिष्य हैं। ऋषिभाषित के ही 33वें अध्याय में यह उल्लेख है कि कल्याण-मित्रों के संसर्ग से मिथिलापति संजय देवलोक को प्राप्त हुए ( 33 / 16 ) | किन्तु, ये संजय मिथिला के राजा हैं जबकि उत्तराध्ययन के संजय कम्पिलपुर के राजा हैं,
अतः
100 इसिभासियाई सुत्ताई