Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 385
________________ (2) यदि अज्ञानी ज्ञानशील को प्रत्यक्ष में ही कठोर वचन कहता है तो प्रज्ञावान् मन में विचार करे कि, 'देखो! यह बाल/मूर्ख मेरे सामने ही मुझको कठोर वचन कह रहा है, किन्तु यह किसी डंडे से, लाठी से, पत्थर से, मुष्टि से या छोटे कपाल (घड़े का टुकड़ा, ठीकरी) आदि से मारता नहीं है, तर्जना नहीं करता है, पीटता नहीं है, परिताड़ना नहीं करता है, सन्ताप (परिताप) नहीं देता है और न उपद्रव करता है। अज्ञानी मूर्ख-स्वभाव के होते हैं। इनको किंचित् भी ज्ञान या अनुभव नहीं होता है।' अतः ज्ञानशील मूों की कठोर वाणी को सम्यक् प्रकार से सहन करे, सामर्थ्य से सहन करे, दैन्यभाव रहित होकर सहन करे और उन पर विजय प्राप्त करे। 2. If a fool casts aspersions in the immediate presence of a wise man the latter should still rationalise it as a lesser evil since the fool at least abstained from beating him with stick, stone and abuses. Fools pride in their folly. They never realise what is true and proper. That's why it is incumbent upon a wise man to brace himself for bearing such bruises reticently. (3.) बाले य पण्डितं दण्डेण वा लट्टिणा वा लेलृणा वा मुट्टिणा वा कवालेण वा अभिहणेज्जा.... उद्दवेज्जा, तं पण्डिए बह मण्णेज्जा : 'दिट्ठा मे एस बाले दण्डेण वा लट्ठिणा वा लेढुणा वा मुट्ठिणा वा कवालेण वा अभिहणति तज्जेति तालेति परितालेति परितावेति उद्दवेति, अण्णतरेणं सत्थजातेणं अण्णयरं सरीरजायं अच्छिन्दइ वा विच्छिन्दइ वा। मुक्खसभावा हि बाला, ण किंचि बालेहिंतो ण विज्जति।' तं पण्डिए सम्म सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा। (3) यदि अज्ञानी व्यक्ति प्रज्ञाशील को डंडे से, लाठी से, पत्थर से, मुष्टि से, घड़े के टुकड़े आदि से मारता है, यावत् उपद्रव करता है तो वह पण्डित हृदय में पर्यालोचन करे कि 'देखो, यह अज्ञानी मुझे दण्ड से, लाठी से, पत्थर से, मुष्टि से, घड़े के टुकड़े से मारता है, तर्जना करता है, पीटता है, परितापना करता है, सन्ताप देता है और उपद्रव करता है, किन्तु यह किसी शस्त्र से मेरे शरीर के किसी अवयव का छेदन नहीं कर रहा है और न भेदन कर रहा है। अज्ञानी मूर्ख-स्वभाव के होते हैं, इनको किंचित् भी ज्ञान या अनुभव नहीं होता है। अतः पण्डित पुरुष इन उपद्रवों को सम्यक् प्रकार से सहन करे, सामर्थ्यपूर्वक सहन करे, दैन्यभाव रहित होकर सहन करे और उन पर विजय प्राप्त करे। 3. If a stupid man chooses to beat and torture the wise man with stone, stick etc. and pillory him like a ruffian, the latter should accept such a maltreatment with grace since he could have done worse and very well amputated or pierced his limbs as well. 384 इसिभासियाइं सुत्ताई

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