Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 433
________________ तेलोक्कसारगरुयं, धीमतो भासितं इमं। सम्मं काएण फासेत्ता, पुणो ण विरमे ततो।।38।। 38. त्रैलोक्य के सारभूत धीमान महापुरुषों ने जो कहा है-कठोर आदेश प्रदान किया है उसका सम्यक् प्रकार से जीवन से स्पर्श कर अर्थात् हृदय में धारण कर पालन करे। उससे पीछे न हटे। 38. Whatever these accomplished beings have uttered should be scrupulously comprehended and carried out in toto. बद्धचिन्धो जधा जोधो, वम्मारूढो थिरायुधो। सीहणायं विमुंचित्ता पलायन्तो ण सोभती।।39।। 39. राजचिह्न बांधकर कवचधारी एवं आयुधों से सुसज्जित योद्धा सिंहनाद करता हुआ भी यदि युद्धस्थल से पलायन करता है तो वह शोभास्पद नहीं है। 39. It behoves not an abundantly equipped and armed and shielded valiant warrior to flee from the battle ground. अगन्धणे कले जातो, जधा णागो महाविसो। मुंचित्ता सविसं भूतो, पियन्तो जाती लाघवं।।40।। 40. जैसे अगन्धन कुल में उत्पन्न हुआ सर्पराज महाविष को छोड़कर यदि उस विष का पुनः पान करता है तो वह लघुता/हीनता को प्राप्त होता है। 40. If a mighty serpent born in the fabled Agandhan breed sheds his venom, it befits him not to repollute his fangs with the vomitted venom. जधा रुप्पिकुलुब्भूतो, रमणिज्जं पि भोयणं। वन्तं पुणो स भुंजन्तो, धिद्धिकारस्स भायणं।।41।। ___41. जैसे रुक्मि कुल (उच्च-कुल) में पैदा हुआ स्वादिष्ट भोजन कर और उसे वमन कर पुनः उसको खाता है तो वह धिक्कार का पात्र होता है। 41. Cursed be one of the fabled Rukmi clan if he consumes delicious food, vomits it and again stoops to consume the vomit. एवं जिणिन्दआणाए, सल्लुद्धरणमेव य। णिग्गमो य पलित्ताओ, सुहिओ सुहमेव तं।।42।। 42. इसी प्रकार जिनेन्द्र की आज्ञा का पालन करने वाला (मुमुक्षु साधक) आत्मा के शल्यों का उन्मूलन कर देता है, भवभ्रमण की ज्वाला से निकल जाता है, सुखी होता है। वस्तुतः वही सच्चा सुख है। 432 इसिभासियाई सुत्ताई

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