Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 428
________________ पुत्तदारं धणं रज्जं, विज्जा सिप्पं कला गुणा। जीविते सति जीवाणं, जीविताय रती अयं।।16।। 16. पुत्र, पत्नी, धन, राज्य, विद्या, शिल्प, कला और गुण-ये सभी प्राणियों को जीवित दशा में ही उनके जीवन को आनन्दित कर सकते हैं। ___16. Progeny, spouse, wealth, empire, education, art, craft and versatility-all yield happiness so long as a human being is alive. आहारादि तु जीवाणं, लोए जीवाण दिज्जती। पाणसंधारणटाय, दुक्खणिग्गहणा तहा।।17।। 17. लोक में प्राणियों के द्वारा प्राणधारी जीवों को आहारादि इसलिए दिये जाते हैं कि वे प्राणों को आश्वस्त होकर धारण कर सकें और दुःख का निग्रह कर सकें। _____17. Living beings should offer food to other living beings to grant them a secure existence and freedom from misery. सत्थेण वण्हिणा वा वि, खते दड्ढे व वेदणा। सए देहे जहा होति, एवं सव्वेसि देहिणं।।18।। __ 18. जैसे स्वयं के शरीर में शस्त्र और आग से घाव, जलन और वेदना होती है, वैसे ही समस्त देहधारियों को भी होती है। 18. As we experience distress due to injury, burn, irritation and pain, so do other organisms. पाणी य पाणिघातं च, पाणिणं च पिया दया। सव्वमेतं विजाणित्ता, पाणिघातं विवज्जए।।19॥ 19. प्राणियों को प्राणिघात अप्रिय है। प्राणियों को दया प्रिय है। इन सबको समझकर मुमुक्ष प्राणिघात–हिंसा का त्याग करे। ____19. All beings dislike death and injury. They cherish kindness. Keeping this in view, the aspirant should shun violence and killing. अहिंसा सव्वसत्ताणं, सदा णिव्वेयकारिका। अहिंसा सव्वसत्तेस, परं बम्भमणिन्दियं।।20। 20. अहिंसा समस्त प्राणियों के लिये निर्वेद-अभयदायक है अथवा वैराग्यकारक है। अहिंसा समस्त प्राणियों में अतीन्द्रिय परब्रह्म है। 45. यम अध्ययन 427

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