Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 397
________________ 2. अग्नि का बल कम मत समझो अर्थात् अग्नि बलशाली है, परन्तु क्रोधाग्नि उससे भी अधिक महाबलशाली है। अग्नि की गति अल्प है अर्थात् सीमित है और कोपाग्नि की गति अमर्यादित है। ___2. Fire is no mean force. But the fire of wrath is far fiercer. Fire has a limited range but wrath is a tremendously more potent menace. सक्का वण्ही णिवारेतं, वारिणा जलितो बहि। सव्वोदहिजलेणावि, कोवग्गी दुण्णिवारओ।।3।। 3. बाहर की जलती हई आग को पानी से बझाना शक्य है, किन्तु कोपाग्नि को समस्त समुद्रों के जल से भी बुझाना दुर्निवार—नितान्त असम्भव है। 3. Physical fire can be put out with water but wrath cares tuppence for all the oceans, put together. एकं भवं दहे वण्ही, दड्ढस्सऽवि सुहं भवे। इमं परं च कोवग्गी, णिस्संकं डहते भवं।।4।। 4. अग्नि केवल एक भव में (शरीर को) जलाती है और जला हुआ व्यक्ति स्वस्थ भी हो जाता है, किन्तु क्रोधाग्नि तो इस भव और पर-भव में निश्शंक होकर जलाती रहती है। 4. Fire can burn one's body only and one may still survive. Not so the wrath. It destroys this incarnation and the one that is to be. अग्गिणा तु इहं दड्डा, सन्तिमिच्छन्ति माणवा।। • कोहग्गिणा तु दड्डाणं, दुक्खं सन्ति पुणो वि हि।।5।। 5. आग से जलने वाला मानव यहाँ तो (उपचार से) शान्ति की कामना करता है, किन्तु क्रोधाग्नि से जलने वाला मानव पुनः-पुनः दुःख को प्राप्त करता है। 5. A burnt being yearns for cure, while one burning with anger suffers recurrent misery sans end. सक्का तमो णिवारेतुं, मणिणा जोतिणा वि वा। कोवतमो तु दुज्जेयो, संसारे सव्वदेहिणं।।6।। 6. मणि और ज्योति (प्रकाश) के द्वारा अन्धकार का निवारण किया जा सकता है, किन्तु क्रोध रूपी अन्धकार संसार के समस्त प्राणियों के लिये दुर्जेय है। 6. A gem and a lamp can brighten the encircling gloom but wrath in its gloom is insurmountable to all beings of the world. 396 इसिभासियाई सुत्ताई

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