Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 410
________________ अत्थादाइं जणं जाणे, णाणाचित्ताणुभासकं। अत्थादाईण वीसंगो, पासन्तस्सऽत्थसंतती।।26।। 26. अर्थादायी-अर्थग्राही अर्थात् धनलोलुप व्यक्ति को विविध प्रकार से मन को आकर्षित करने वाली मधुर भाषा बोलने वाला (मीठा बोला) समझो। अथवा अधिक मधुरभाषी को अर्थलोलुप व्यक्ति समझना चाहिये। उसकी अर्थग्रहण करने की सन्तति/परम्परा को देखकर उस धनलोलुप व्यक्ति से दूर ही रहना चाहिये। 26. The avaricious resorts to wily tactics in his persuasive specious speech. Honey-tongued individuals are patently greedy. We should be wary of such glib beings as they are thoroughgoing materialists and self-seekers. डम्भकप्पं कत्तिसमं, णिच्छयम्मि विभावए। णिखिलामोस कारित्तु, उवचारम्मि परिच्छती।।27।। 27. दम्भपूर्ण आचरण को निश्चयपूर्वक सिंह-चर्म से आच्छादित शृगाल के समान समझना चाहिए। पूर्णरूप से असत्याचरण करने वाले की उपचार से परीक्षा होती है। 27. A crafty conduct embodies a jackal in a tiger-hide. Crooks are detected by experience only. सब्भावे दब्बलं जाणे, णाणावण्णाणुभासक। पुप्फादाणे सुणंदा वा, पवकारघरं गता।।28।। 28. मानव स्वभाव से दुर्बल है। वह अनेक वर्णों-रूपों आदि का आभास देता है। पुष्पग्रहण करने के लिए सुनन्दा प्लवकार (नाव बनाने वाले) के घर गई। 28. Man is fallible by nature. He can adopt a thousand guises. The legend of Sunanda who approached the boatmaker for flowers illustrates this axiom. दव्वे खेत्ते य काले य, सव्वभावे य सव्वधा। सव्वेसिं लिंगजीवाणं, भावाणं तु विहावए।।29।। 29. द्रव्य क्षेत्र, काल और सभी प्रकार के भावों में तथा समस्त लिंगों-वेषों में रहे समस्त जीवों की भावना को सर्वदा समझना चाहिए। 29. We should be able to realise the truth behind different garbs in substance, time, place and feeling. 38. सातिपुत्र बुद्ध अध्ययन 409

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