Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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18. अट्ठदसं वरिसवज्झयणं
अयते खलु भो जीवे वज्जं समादियति । से कहमेतं ? पाणातिवाएणं जाव परिग्गहेणं, अरित जाव मिच्छादंसणसल्लेणं वज्जं समाइत्ता हत्थच्छेयणाइं पायच्छेयणाइं जाव अणुपरियदृन्ति णवमुद्देसगमेणं । जे खलु भोजीवे णो वज्जं समादियति, से कहमेतं ? वरिसवकण्हेण अरहता इसिणा बुइतं । पाणाइवातवेरमणेणं जाव मिच्छादंसणसल्लवेरमणेणं सोइन्दिय 5- णिग्गणं णो वज्जं समज्जिणित्ता हत्थच्छेयणाइं पायच्छेयणाइं जाव दोमणस्साई वीतिवतित्ता सिवअचलं- जाव चिट्ठन्ति ।
भो! जीव दुःखी होने पर प्राणिवधादिक पापकर्म स्वीकार करता है, वह कैसे ? प्राणातिपात (हिंसा) यावत् परिग्रह, अरति यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से पापकर्म का उपार्जन करता है। इसके फलस्वरूप वह नवम महाकाश्यप अध्ययन में प्रतिपादित हस्तच्छेदन, पादछेदन आदि असीम दुःखों को प्राप्त करता हुआ संसार में परिभ्रमण करता है ।
भो! जो जीव प्राणिवधादिक पापकर्म स्वीकार नहीं करता है, वह कैसे ?
इस पर अर्हत् वर्षप (वरिसव) ऋषि बोले
प्राणातिपात (हिंसा) से निवृत्ति यावत् मिथ्यादर्शन शल्य अर्थात् 18 पापस्थानों से निवृत्ति और श्रोत्रेन्द्रियादि पाँचों इन्द्रियों का निग्रह कर जो पाप कर्म का उपार्जन नहीं करता है। फलस्वरूप वह हस्तच्छेदन पादछेदन यावत् दुश्चिन्ता पर्यन्त दुःख - समूह को व्यतिक्रान्त (नाश) करके शिव, अचल यावत् शाश्वत स्थान को प्राप्त कर स्थिति करता है।
What makes you folk indulge in butchering and the like? What makes you commit violence, acquisition, insincere deeds and thus pile up sins? The consequence is that the unwise author of such deeds suffers amputation of arms and feet, as narrated in the ninth discourse of Mahakashyap.
How is it that the wise never indulge in killing and exterminating life?
Said Varshap:
18. वर्षप अध्ययन 309