Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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30. तीसं वाउणामज्झयणं
अधासच्चमिणं सव्वं वायुणा सच्चसंजुत्तेणं अरहता इसिणा बुइतं।
यह समस्त (विश्व) सत्य है। अर्थात् विराट् विश्व में जैसा है वह वैसा ही सत्य है।
ऐसा सत्यसंयुक्त अर्हत् वायु ऋषि बोलेThe world is what it appears, said truthful Vayu, the seer :
इध जं कीरते कम्म, तं परतोवभुज्जतो।
मूलसेकेसु रुक्खेसु, फलं साहासु दिस्सति।।1।। __ 1. जो कर्म यहाँ किये जाते हैं उनको परलोक में भोगना पड़ता है। वृक्षों की जड़ का सिंचन करने पर उसकी शाखाओं में फल दिखाई देता है।
1. What you do here revisits you in the next incarnation in the form of your destiny. If a tree is watered in its roots fruits are bound to appear.
जारिसं वुप्पते बीयं, तारिसं भुज्जतो फलं।
णाणासंठाणसंबद्धं, णाणासण्णाभिसण्णितं।।2।। 2. जिस प्रकार का बीज बोता है उसी प्रकार का फल भोगता (उत्पन्न होता) है। जो कि विविध आकारों (संस्थानों, आकृतियों) में होता है और बहुविध संज्ञाओं से कहा जाता है।
2. As you sow so shall you reap. Myriads are the kinds of destinies thus emerging.
जारिसं किज्जते कम्मं, तारिसं भुज्जते फलं।
णाणापयोगणिव्वत्तं, दुक्खं वा जइ वा सुहं।।3।। - 3. जैसा कर्म करता है वैसा ही फल भोगता है। विविध प्रकार से साधनोंव्यापारों से कर्मों की रचना होती है। ये कर्म सुख और दुःख रूप होते हैं।
3. Destinies are in accordance with the Karmas one performs. These Karmas are infinite in variety. They hold the germs of happiness or misery in them.
30. वायु अध्ययन 365