Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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कल्लाणा लभति कल्लाणं, पावं पावा तु पावति ।
हिंसं लभति हन्तारं जइत्ता य पराजयं ॥ 4 ॥
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4. कल्याणकारी कामों से कल्याण प्राप्त करता है, पापकारी कृत्यों से पाप प्राप्त करता है, हिंसक कृत्यों से हिंसा प्राप्त करता है और विजेता बनकर भी पराजय प्राप्त करता है।
4. Benign Karmas are beneficent. Malevolent Karmas are sinful and woe-awarding. Violent deeds generate violence and the triumphant one might as well be termed as defeated.
सूदणं सूदइत्ताणं, णिन्दित्ता वि यणिन्दणं । अक्कोसइत्ता अक्कोसं, णत्थि कम्मं णिरत्थकं | 15 ||
5. दुःख देने वाले को दुःख भोगना पड़ेगा । निन्दक को निन्दित होना पड़ेगा। आक्रोश करने वाले को आक्रोश भोगना पड़ेगा, क्योंकि कर्म निरर्थक नहीं होते हैं।
5. One who is a sadist reaps miseries willy nilly. One who maligns others will be slandered in due course. Char others in wrath and so shall you be charred. No Karma is fruitless.
मण्णन्ति भद्दकं भद्दका इ, मधुराई मधुरं ति मण्णति । कडुयं कडुयं भणियं ति, फरुसं फरुसं ति माणति ।। 6 ।।
6. प्राणी भद्रकार्यों को भद्र - कुशलकारी मानते हैं, मधुर को मधुर मानते हैं, कडुवे को कडुवा कहते हैं और कठोर को कठोर मानते हैं।
6. Individuals deem suspicious deeds as suspicious, pleasant ones as pleasant, bitter ones as bitter and severe ones as severe. कल्लाणं ति भणन्तस्स, कल्लाणा एपडिस्सुया । पावकं ति भणन्तस्स, पावया एपडिस्सुया ॥ 7 ॥
7. कल्याण बोलने वाला कल्याण की ही प्रतिध्वनि सुनता है और पाप बोलने वाला पाप की ही प्रतिध्वनि सुनता है।
7. One whose utterances are auspicious shall hear similar echoes and one who rains curse shall be retributed accordingly.
पडिस्सुयासरिसं कम्मं णच्चा भिक्खू सुभासुभं ।
तं कम्मं न सेवेज्जा, जेणं भवति णारए ।। 8 ।।
8. भिक्षु शुभाशुभ कर्मों को प्रतिश्रुति - प्रतिध्वनि के समान ही समझे। जिसके नारक होता है अर्थात् नरक गति मिलती है उन कर्मों का आचरण न करे।
366 इसिभासियाई सुत्ताई