Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 380
________________ सुभासियाए भासाये, सुकडेण य कम्मुणा। पज्जण्णे कालवासी वा, जसं तु अभिगच्छति।।4।। ____4. शिष्टवाणी और प्रशस्त कर्म से वह (पण्डित) समय पर बरसने वाले मेघ के समान यश को प्राप्त करता है। 4. Decency of speech and noble deeds yield one immense fame. णेव बालेहि संसग्गिं, णेव बालेहि संथवं। धम्माधम्मं च बालेहिं, णेव कुज्जा कदायि वि।।5।। 5. बाल/अज्ञानियों के साथ कदापि संसर्ग न करें और न उनसे घनिष्ठ सम्पर्क ही रखें। उनके साथ कदापि धर्माधर्म तत्त्वों का विचार-विमर्श भी न करें। 5. Little concourse be had with the immature and unwise folk. They hardly deserve to be consulted in respect of religious and spiritual matters. इहेवाकित्ति पावेहिं, पेच्चा गच्छेइ दोगति। तम्हा बालेहि संसग्गिं, णेव कुज्जा कदायि वि।।6।। 6. अज्ञानियों के सम्पर्क से इस लोक में अपकीर्ति मिलती है और परलोक में दुर्गति प्राप्त होती है। अतः बाल-अज्ञानियों के साथ कदापि संसर्ग न करें। 6. A traffic with such folk attracts infamy and evil destiny hereafter. They should be scrupulously shunned. साहूहिं संगमं कुज्जा, साहूहिं चेव संथवं। धम्माधम्मं च साहूहिं, सदा कुव्वेज्ज पण्डिए।।7।। ____7. पण्डित—प्रज्ञाशील पुरुष साधुजनों-ज्ञानीपुरुषों के साथ सर्वदा संसर्ग करें और उनसे घनिष्ठ सम्पर्क रखें तथा उनके साथ सर्वदा तत्त्वविचारणा करें। 7. Wise and learned beings should seek the proximity of saints and profoundly learned persons and engage in conference with them. इहेव कित्तिं पाउणति पेच्चा गच्छइ सोगति। तम्हा साधूहि संसग्गिं, सदा कुव्विज्ज पण्डिए।।8।। 8. ज्ञानीजनों के सम्पर्क से इस लोक में कीर्ति प्राप्त होती है और परलोक में सद्गति प्राप्त होती है। अतः बुद्धिमान् सर्वदा साधुजनों से सम्पर्क करें। 33. अरुण अध्ययन 379.

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