Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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9. गमन किया जाता है, अतः इसे गति कहते हैं।
9. There is mobility and hence it is called gati.
(अ.) उद्धगामी जीवा, अहेगामी पोग्गला ।
अ. ऊर्ध्वगामी (विकासोन्मुख ) जीव होते हैं और अधोगामी पुद्गल होते हैं।
A. The animate beings evolve and escalate and the inanimate ones descend in scale.
(ब.) कम्मप्पभवा जीवा, परिणामप्पभवा पोग्गला ।
ब.
कर्म- -प्रसूत जीव होते हैं और परिणाम - प्रसूत पुद्गल होते हैं।
B. The animate are deed-generated while the inanimate are consequence-generated.
(स.) कम्मं पप्प फलविवाको जीवाणं, परिणामं पप्प फलविवाको पोग्गलाणं ।
स. जीवों की गति कर्म से प्राप्त फल- विपाक से होती है और पुद्गलों की गति परिणाम से प्राप्त फल- विपाक से होती है।
C. The animate owe their destiny to the brewing catharsis of Karmas while the inanimate owe it to such a process of consequences.
(द) विमा पया कयाई अव्वाबाहसुहमेसिया कसं कसावइत्ता ।
द. कोई भी कषाय अथवा हिंसा करके अव्याबाध सुख को प्राप्त नहीं कर सकता है।
D. One resorting to sin and violence can never win lasting happiness.
(इ) जीवा दुविहं वेदणं वेदेन्ति पाणातीवात (....) वेरमणेणं जाव मिच्छादंसणवेरमणेणं । किच्चा जीवा, सातणं वेयणं वेदेन्ति । जस्सट्टाए णिट्टेति बिहेति, समुच्छिज्जिस्सति अट्ठा समुच्चिट्टिस्सति । णिट्टितकरणिज्जे सन्ते संसारमग्गा मडाइ णियण्ठे णिरुद्धपवंचे वोच्छिण्णसंसारे वोच्छिण्णसंसारवेदणिज्जे पहीणसंसारे पहीणसंसारवेयणिज्जे णो पुणरवि इत्थत्तं हव्वमागच्छति ।
इ. जीव दो प्रकार की वेदना अनुभव करते हैं । प्राणातिपात — हिंसा से निवृत्ति यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से विरत होकर जीव साता (सुख) वेदन का अनुभव करते हैं । किन्तु जिनसे ( हिंसादि कृत्यों से) जीव भय खाता है वे ही उसे प्राप्त होते हैं
370 इसिभासियाई सुत्ताई