Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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(द) ण कयाति पया अदुक्खं पकासीति। द. इसका वशवर्ती कदापि अदुःख अर्थात् मोक्ष को प्राप्त नहीं करेगा।
D. He who is under the influence of destiny can never attain Moksha or void of sorrow.
(इ) अत्तकडा जीवा, किच्चा किच्चा वेदेन्ति, तंजहा : पाणातिवाएणं जाव परिग्गहेणं।
इ. आत्मा स्वयं पुनः-पुनः कर्मों को करके उसका वेदन करती है, अर्थात् स्वकृत कर्मों को भोगती है। वे कर्म इस प्रकार हैं—प्राणातिपात यावत् परिग्रह।
E. Indulging repeatedly in the activity the animate thing continues to suffer the consequences. The activities range from killing to hoarding
एस खलु असंबुद्धे असंवुडकम्मन्ते चाउज्जामे णियण्ठे अविहं कम्मगण्ठिं पगरेति, से य चउहिं ठाणेहिं विवागमागच्छति, तंजहा : णेरइएहिं तिरिक्खजोणिएहिं मणुस्सेहिं देवेहि। अत्तकडा जीवा, णो परकडा, किच्चा किच्चा वेदिन्ति, तंजहा : पाणातिवातवेरमणेणं जाव परिग्गहवेरमणेणं। एस खलु संबुद्धे संवुड-कम्मन्ते चाउज्जामे णियण्ठे अट्टविहं कम्मगण्ठिं णो पकरेति, से य चउहिं ठाणेहिं णो विपाकमागच्छति, तंजहा : णेरइएहिं तिरिक्खजोणिएहिं मणुस्सेहिं देवेहि। लोए ण कताइ णासी ण कताइ ण भवति ण कताइ ण भविस्सति, भुविं च भवति य भविस्सति य, धुवे णितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे। से जहा नामते पंच अस्थिकाया ण कयाति णासी जाव णिच्चा एवामेव लोकेऽवि ण कयाति णासी जाव णिच्चे।
वह असम्बुद्ध-ज्ञानरहित, कर्म के द्वारों को न रोकने वाला तथा चातुर्याम धर्म (अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह) से रहित निर्ग्रन्थ आठ प्रकार की कर्मग्रन्थि को बांधता है। वे ही कर्म चार प्रकार से विपाक (फलरूप) में आते हैं। वे हैं-1. नरक योनि, 2. तिर्यक् योनि 3. मनुष्य योनि और 4. देवयोनि।
The ignorant, unvigilant towards Karma and devoid of the four dimensional discipline (non-violence, truth, non-theft, and non-possessiveness), is drawn into the eight types of bondages. These Karmas precipitate in four directions which are; hellish, animal, human and devine.
31. पार्श्व अध्ययन 373