Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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21. एगवीसं गाहावइज्जं नामज्झयणं
णाहं पुरा किंचि जाणामि, सव्वलोकंसि। गाहावतिपुत्तेण तरुण अरहता इसिणा बुइतं।
मैं पहले समस्त लोक के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं जानता था। ऐसा अर्हत् गाथापति-श्रेष्ठि पुत्र तरुण ऋषि बोले
Initially I was utterly ignorant of the universe, said Gathapati trader's son Tarun, the seer :
अण्णाणमूलकं खलु भो पुव्वं न जाणामि न पासामि नोऽभिसमावेमि नोऽभिसंबुज्झामि, नाणमूलाकं खलु भो इयाणिं जाणामि पासामि
अभिसमावेमि अभिसंबुज्झामि। अण्णाणमूलयं खलु मम कामेहिं किच्चं करणिज्जं, णाणमूलयं खलु मम कामेहिं अकिच्चं अकरणिज्जं।
अण्णाणमूलयं जीवा चाउरन्तं संसारं जाव परियट्टयन्ति, णाणमूलयं जीवा चाउरन्तं जाव वीयीवयन्ति। तम्हा अण्णाणं परिवज्ज णाणमूलकं सव्वदुक्खाणं अन्तं करिस्सामि, सव्वदुक्खाणं अन्तं किच्चा रियमयलं जाव सासतं अब्भुवगते चिट्ठिस्सामि।
भो! अज्ञानमूलक (ज्ञानहीन) होने के कारण यह मैं पहले न जानता था, न देखता था, न समझता था और न अवबोध ही रखता था। भो! ज्ञानमूलक (ज्ञानवान्) होने पर अब मैं जानता हूँ, देखता हूँ, समझता हूँ और अवबोध रखता हूँ। अज्ञानमूलक (ज्ञानहीन) होने के कारण काम के वशीभूत होकर मैंने कार्य किये हैं। ज्ञान-सम्पन्न होने पर मेरे लिए काम के वशीभूत होकर कार्य करना अकरणीय है, अयुक्त है। अज्ञानमूलक जीव चतुर्गतिरूप संसार में यावत् परिभ्रमण करते हैं। ज्ञानमूलक जीव चतुर्गतिरूप संसार का यावत् त्याग (नाश) करते हैं। अतः अज्ञान का परित्याग कर, मैं ज्ञान-सम्पन्न होकर समस्त दुःखों का अन्त करूँगा। समस्त दुःखों का अन्त कर शिव, अचल, यावत् शाश्वत स्थान को प्राप्त कर स्थिति करूँगा।
Being ignorant earlier I knew nothing, I saw nothing and comprehended nothing. Having mastered all knowledge, now I know, I understand and comprehend. During my previous
21. गाथापतिपुत्र तरुण अध्ययन 317