Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
11. एगादसं मंखलिपुत्तज्झयणं
सिट्ठयणे व्व आणच्चा अमुणी। संखाए य णच्चा एसे तातिते। मंखलिपुत्तेण अरहता इसिणा बुझ्यं।
__ निर्मित लोक का ज्ञान (सर्व पदार्थों का ज्ञान) न रहने पर वह अमुनि हो जाता है अथवा वीतराग की आज्ञा प्राप्त करने के लिए लौकिक ज्ञान को प्राप्त करने वाला शिष्ट भी अमुनि हो जाता है और संस्कार तथा (आध्यात्मिक) ज्ञान को प्राप्त करने वाला मुनि, निश्चय से त्रायी-आत्मरक्षक होता है।
ऐसा अर्हत् मंखलिपुत्र ऋषि बोले
One not endowed with the all-comprehensive knowledge is not a Monk (Muni). One fully enlightened is Muni and he commands knowledge that ever shields him.
Said enlightened Mankhaliputra.
से एजति वेयति खुब्भति घट्टति फन्दति चलति उदीरति, तं तं भावं परिणमति, ण से ताती। से णो एजति णो खुब्भति णो वेयति णो घट्टति णो फन्दति णो चलति णो उदीरेति, णो तं तं भावं परिणमति, से ताती। तातीणं च खलु णत्थि एजणा वेदणा खोभणा घट्टणा फन्दणा चलणा उदीरणा तं तं भावं परिणामे। ताती खलु अप्पाणं च परं च चाउरन्ताओ संसारकन्ताराओ तातीति ताई।
जो पदार्थों की परिणति को देखकर कम्पित होता है, अनुभव करता है, क्षुभित होता है, आहत होता है, स्पन्दित होता है, चलायमान होता है, प्रेरित होता है और उन-उन भावों/पदार्थों में रूपान्तरित हो जाता है वह मुनि (स्व का) रक्षक नहीं है। जो पदार्थों को देखकर कंपित नहीं होता है, वेदन अनुभव नहीं करता है, आहत नहीं होता है, स्पन्दित नहीं होता है, चलित नहीं होता है, प्रेरित नहीं होता है, और उन भावों/पदार्थों में रूपान्तरित नहीं होता है वह मुनि (स्व का) रक्षक है। (आत्म) रक्षक मुनि को वस्तुतः न कंपन होता है, न अनुभव होता है, न उसे क्षोभ होता है, न आहत होता है, न चलायमान होता है, न प्रेरित होता है और न वह उन-उन पदार्थों में परिणमनशील/रूपान्तरित होता है। वस्तुतः ऐसा त्रायी/उपकारी मुनि स्वयं का और दूसरों का चतुर्गतिमय संसाररूपी अटवी (भयंकर जंगल) से रक्षण करता है।
284 इसिभासियाई सुत्ताई