Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
6. छट्टं वक्कलचीरिज्झयणं
तमेव उवरते मातंगसड्डे कायभेदाति आयतितमुदाहरे देवदाणवाणुमतं । खलु भो लोकं सणरामरं वसीकतमेव मण्णामि, तमहं बेमि ।
तेणेमं
वियत्त-वक्कलचीरिणा अरहता इसिणा बुझतं ।
जिस प्रकार मातंग शरीर त्याग के समय गहन वन में जाता है उसी प्रकार मातंग — हाथी की तरह आचरण करने वाला श्राद्ध - श्रावक अर्थात् मातंग श्राद्ध उन अशुभवृत्तियों से रहित होकर भविष्य में कायभेद - शरीरत्याग के लिये गमन करता है। उसी को देव और दानवों से अनुमोदित कहते हैं । भो मुमुक्षु ! निश्चय से मनुष्य और देवों से युक्त यह लोक जिसके वशीभूत (आधीन) है, उसका मैं प्रतिपादन करता हूँ।
ऐसा अर्हत गीतार्थ अथवा वृद्ध वल्कलचीरी ऋषि बोले
A wanton being who behaves like an intoxicated elephant will shed such vicious trends to attain liberation at the end. I uphold this theme endorsed, in the past, by beings of all categories. I propound vehemently that the entire universe revolves around this ethical doctrine.
-
So pronounced valkalchiri, the aged sire GITARTH
तु ण नारीगणपमत्ते, अप्पणो य अबंधवे ! |
पुरिसा ! जत्तो वि वच्चह, तत्तो वि जुधिरे जणे ।।1।।
1. हे पुरुष ! स्त्रिवृन्द के प्रति अत्यासक्ति को धारण करके अपना ही शत्रु मत न तुझ से जितना भी सम्भव हो उतना ही तू स्त्री के प्रति आसक्ति से युद्ध कर ।
1. Thou O Man, free thyself of lecherous attraction to females. It is suicidal indeed. Tirelessly combat such a libido.
णिरंकुसे व मातंगे, छिण्णरस्सी हए वि वा । णाणप्पग्गहपभट्टे, विविधं पवते परे ॥ 2 ॥
2. अंकुश रहित हाथी और लगाम रहित घोड़ा स्वच्छन्द हो जाता है, उसी प्रकार ज्ञानरूप अंकुश से रहित मनुष्य स्वच्छन्दाचरण करता है।
6. वक्कलचीरी अध्ययन 261