Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 264
________________ णाणप्पग्गहसंबन्धे, धितिमं पणिहितिन्दिए। सुत्तमेत्तगती चेव, तधा साधू णिरंगणे।।7।। 7. धैर्यशील, दमितेन्द्रिय और निर्लेप साधु सूत्र-मात्र-गति का अवलंबन लेकर अर्थात् उसी रस्सी को अनेक प्रकार से अंकुश (लगाम, नाथ) के रूप में प्रयोग करे। 7. An ascetic aspirant should wisely manipulate these very binding chords to restrain his urges. सच्छंदगतिपयारा, जीवा संसारसागरे। कम्मसंताणसंबद्धा, हिंडंति विविहं भवं।।8।। 8. कर्म-परम्परा से सम्बद्ध जीव स्वच्छन्द गति से संचरण करते हुए संसार-समुद्र में विविध भवों के द्वारा भटकते रहते हैं। 8. Individuals riveted to karmic smear keep reaming endlessly like flotsam and jetsam. इत्थीऽणुगिद्धे वसए, अप्पणो य अबंधवे। जत्तो वि वज्जती पुरिसे, तत्तो वि जुधिरे जणे। मन्नती मुक्कमप्पाणं, पडिबद्धे पलायते।।१।। 9. हे पुरुष! स्त्रिवृन्द के प्रति अत्यन्त आसक्ति को धारण करके तू अपना ही शत्रु मत बन। तू जितना ही इसका त्याग करेगा उतना ही तू उपशान्त बनेगा। जो अपने आपको मुक्त मान लेता है वह प्रतिबद्ध होकर पलायन करता है। 9. It is fatal to abandon oneself to lascivious urges. A curb on these would win transcendental place within. An imagined liberation is another name for severes bondage. वियत्ते भगवं वक्कलचीरि उग्गतवे त्ति। उग्र तपश्चर्या के द्वारा गीतार्थ वल्कलचीरी कर्मरहित हुए। Gitartha Valkalchiri attained emancipation by the dint of austerities and penitence. एवं सिद्धे बुद्धे विरते विपावे दन्ते दविए अलं ताई णो पुणरवि इच्चत्थं हव्वमागच्छति त्ति बेमि। (इइ) छटुं वक्कलचीरिनामज्झयणं। 6. वक्कलचीरी अध्ययन 263

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