Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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10. दसमं तेतलिपुत्तज्झयणं
को कं ठावेति णण्णत्थ सगाई कम्माइं इमाइं? सद्धेयं खलु भो समणा वदन्ती, सद्धेयं खलु माहणा, अहमेगोऽसद्धेयं वदिस्सामि। तेतलिपुत्तेण अरहता इसिणा बुइय। __ मेरे इन स्वकीय कर्मों को कोई किसी अन्यत्र स्थान पर स्थापित नहीं कर सकता। कोई दूसरे का कर्म हटा नहीं सकता। भो मुमुक्षु! श्रमण कहते हैं कि श्रद्धा करनी चाहिए। माहण (ब्राह्मण) कहते हैं कि श्रद्धा करनी चाहिये। मैं अकेला कहता हूँ कि श्रद्धा नहीं करनी चाहिये।
ऐसा अर्हत् तेतलिपुत्र ऋषि बोले
Deeds performed by me can never be bracketed with another one's. None else's deeds can be alienated. Be it noted that Shramanas and Brahamins commend devoutness. It is I alone who discard devoutness.
Adds Taitaliputra, the enlightened :
सपरिजणं पि णाम ममं अपरिजणो त्ति को मे तं सद्दहिस्सति? सपूत्तं पि णाम ममं अपुत्ते त्ति को मे तं सद्दहिस्सति? एवं समित्तं पि णाम ममं अमित्तं पिणाम मम, सपरिग्गहं पिणाम ममं दाणमाण सक्कारोवयारसंगहिते तेतलिपुत्ते ससयणपरिजणे विरागं गते, को मे तं सद्दहिस्सति? जाति-कलरूव-विणओवयार-सालिणी पोटिला मूसिकारधूता मिच्छं विप्पडिवन्ना, को मे तं सद्दहिस्सति? कालक्कमनीतिविसारदे तेतलिपुत्ते विसादं गते त्ति को मे तं सद्दहिस्सति ? तेतलिपुत्तेण अमच्चेण गिहं पविसित्ता तालपुडके विसे खातिते त्ति से वियसे खाइते त्ति को मे तं सद्दहिस्सति? तेतलिपुत्तेण अमच्चेणं महतिमहालयं रुक्खं दुरुहित्ता पासे छिण्णे, तहावि ण मए, को मे तं सद्दहिस्सति? तेतलिपुत्तेण महतिमहालयं पासाणं गीवाए बन्धित्ता अत्थाहाए पुक्खरिणीए अप्पा पक्खित्ते, तत्थ अवि य णं थाहे लद्धे, को मे तं सद्दहिस्सति? तेतलिपुत्तेण महतिमहालियं कद्ररासी पलीवेत्ता अप्पा पक्खित्ते, से वि य से अगणिकाए विज्झाए, को मे तं सद्दहिस्सति?
परिवार सहित होने पर भी मैं परिवार रहित हूँ, ऐसा कहने पर मेरे वचनों पर कौन विश्वास करेगा? पुत्र-सहित होने पर भी मैं पुत्र रहित हूँ, मेरे इन वाक्यों पर 280 इसिभासियाई सुत्ताई