Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
यदि हम इन दोनों गाथाओं की तुलना सूत्रकृतांग नियुक्ति की निम्न गाथा से करें, तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि दोनों में कितना शैली-साम्य है। सूत्रकृतांग नियुक्ति की वह गाथा इस प्रकार है
अद्दपुरे अद्दसुतो नामेणं अद्दओ त्ति अणगारो। तत्तो समुट्ठियमिणं अज्झयणं अद्दइज्जं ति।।
___ -सूत्रकृतांग-नियुक्ति -गाथा-187 इसी प्रकार ऋषिमण्डल और सूत्रकृतांग-नियुक्ति की निम्न गाथाओं की तुलना से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि दोनों में कितना शैली एवं भाषा-साम्य है। इसी प्रकार
नालंदाए अद्धत्तेरस-कुलकोडिकय निवासाए। पुच्छिअ गोअमसामि, सावयवयपच्चक्खाणविहिं।। जो चरमजिणसमीवे, पडिवन्नो पंचजामियं धम्म। पेढालपुत्तमुदयं, तं वंदे मुणियसयलनयं।।
• इसिमण्डल- 102, 103
तुलनीय नालंदाए समीवे मणोहरे भासि इन्दभूइणा उ। अज्झयणं उदगस्स उ एयं नालंदइज्जं तु।। पासावचिज्जो पुच्छियाइयो अज्जगोयमं उदगो। सावगपुच्छा धम्मं सोउं कहियम्मि उवसन्ता।।
-सूत्रकृतांग-नियुक्ति - 204, 205 यद्यपि पौराणिकता और समास बहुल भाषा की दृष्टि से सूत्रकृतांग नियुक्ति की अपेक्षा ऋषिमण्डल की गाथाएँ अपेक्षाकृत कुछ परवर्ती लगती हैं, फिर भी दोनों में शैली-साम्य है।
उपर्युक्त तुलनात्मक साम्यता से ऐसा प्रतीत होता है कि ऋषिभाषित पर कोई नियुक्ति अवश्य लिखी गयी थी, जिसकी गाथाएँ यथावत् रूप में अथवा किञ्चित् परिवर्तन के साथ पहले इसिमण्डलत्थू में तथा बाद में धर्मघोष कृतक माने जाने वाले ऋषिमण्डल प्रकरण (इसिमण्डल) में सम्मिलित कर ली गई होंगी। ऋषिमण्डल में ऋषिभाषित के अधिकांश ऋषियों का उल्लेख मिलने से इस धारणा की पुष्टि होती है कि चाहे वर्तमान इसिमण्डल (ऋषिमण्डल) को ऋषिभाषित की नियुक्ति अथवा आचारांग चूर्णि में उल्लेखित इसिमण्डलत्थू
108 इसिभासियाई सुत्ताई