Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
(ज्ञातव्य है कि पक्खियसुत्त में अंग बाह्य ग्रन्थों की सूची में 28 उत्कालिक और 36 कालिक कुल 64 ग्रन्थों के नाम हैं। इनमें 6 आवश्यक और 12 अंग मिलाने से कुल 82 की संख्या होती है, लगभग यह सूची विधिमार्गप्रपा में भी उपलब्ध होती है।) — पक्खियसुत्त (पृ. 79) (देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड सीरिज क्रमांक 99 ) 2. अंगबाह्यमनेकविधम् । तद्यथा - सामायिकं, चतुर्विंशति स्तवः, वन्दनं, प्रतिक्रमणं, कायव्युत्सर्गः प्रत्याख्यानं, दशवैकालिकं, उत्तराध्यायाः, दशाः, कल्पव्यवहारौ, निशीथं, ऋषिभाषितानीत्येवमादि । —तत्त्वार्थधिगमसूत्रम् (स्वोपज्ञभाष्य) 1/20 (देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड, क्रम संख्या 57 )
3. तथा ऋषिभाषितानि उत्तराध्ययनादीनि.... ।
- आवश्यक निर्युक्तिः, हारिभद्रीयवृत्ति पृ. 206
4. ऋषिभाषितानां च देवेन्द्रस्तवादीनां नियुक्तिं .... ।
- आवश्यक निर्युक्ति, हारिभद्रीय वृत्ति पृ. 41 5. इसिभासियाइं पणयालीसं अज्झयणाई कालियाइ, तेसु दिण 15 निव्विएहिं अणागाढजोगो। अण्णे भांति उत्तरज्झयणेसु चेव एयाई अंतब्भवति ।
विधिमार्गप्रपा पृ. 58
देविंदत्थयमाई पइण्णगा होंति इगिगनिविएण । इसिभासिय अज्झयणा आयंबिलकालतिगसज्झा ।। 61 ।। केसिं चि मए अंतब्भवंति एयाई उत्तरज्झयणे । पणयालीस दिणेंहिं केसिं वि जोगो अणागाढो । 162 ।।
विधिमार्गप्रपा पृ. 62
(ज्ञातव्य है कि प्रकीर्णकों की संख्या के सम्बन्ध में विधिमार्गप्रपा में भी मतैक्य नहीं है। 'सज्झायपट्ठवण विही' पृ. 45 पर 11 अंग, 12 उपांग, 6 छेद, 4 मूल एवं 2 चूलिका, सूत्र के घटाने पर लगभग 31 प्रकीर्णकों के नाम मिलते हैं। जबकि पृ. 57-58 पर ऋषिभाषित सहित 15 प्रकीर्णकों का उल्लेख है । )
6. (अ) कालियसुयं च इसिभासियाई तइओ य सूरपण्णत्ती ।
सव्वो य दिट्टिवाओ चउत्थओ होई अणुओगो । । 124।। (मू. भा. ) तथा ऋषिभाषितानि उत्तराध्ययनादीनि 'तृतीयश्च' कालानुयोगः - आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति: पृ. 206
घ) आवस्सगस्स दसकालिअस्स तह उत्तरज्झयणायारे । सूयगडे निज्जुत्तिं वुच्छामि तहा दसाणं च ।। कप्पस्स य निज्जुत्तिं ववहारस्सेव परमणिउणस्म । अपत् वुच्छं इसिभाषिआणं च ।।
116 इसिभासियाई सुत्ताई
आवश्यक नियुक्ति 84-85